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________________ प्रवचन-सारोद्धार १०३ सकता। क्योंकि तद्भव सम्बन्धी क्षायिक सम्यक्त्व मनुष्य को ही होता है। वैमानिक देवों के तथा संख्याता वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्य के औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक तीन सम्यक्त्व होते हैं। वैमानिक देव में उपशम व क्षायिक सम्यक्त्व तो नरक की तरह ही होता है। वैमानिक देवताओं का उपशम सम्यक्त्व तद्भव सम्बन्धी होता है, क्योंकि अनादि मिथ्यादृष्टि को सर्वप्रथम उपशम सम्यक्त्व ही होता है। क्षायिक सम्यक्त्व नरक की तरह देवों के भी पारभविक ही है। परन्तु उपशम सम्यक्त्व के पश्चात् होने वाला क्षायोपशमिक सम्यक्त्व वैमानिक देवों में तद्भव सम्बन्धी होता है। क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी मनुष्य या तिर्यंच मरकर यदि वैमानिक देव में उत्पन्न होते हैं तो उनका क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पारभविक होता है । • मनुष्य दो प्रकार के हैं। संख्यात वर्ष की आयु वाले तथा असंख्यात वर्ष की आयु वाले। संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य का उपशम सम्यक्त्व तद्भव सम्बन्धी है क्योंकि उन्हें सर्वप्रथम उपशम सम्यक्त्व ही होता है अथवा उपशम श्रेणि करने वाले को भी उपशम सम्यक्त्व होता है। पर मनुष्य में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व तद्भव सम्बन्धी व पारभविक दोनों होता है। उपशम सम्यक्त्व के पश्चात् होने वाला क्षायोपशमिक सम्यक्त्व तद्भव सम्बन्धी है तथा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी देव से निकलकर मनुष्य में उत्पन्न होने वाले आत्मा की अपेक्षा पारभविक है। मनुष्य में क्षायिक सम्यक्त्व भी दोनों भव सम्बन्धी होता है। क्षपक श्रेणी करने वाले को तदभव संबंधी होता है तथा क्षायिक सम्यग्दष्टि देव या नरक से निकलकर मनुष्य होने वाले की अपेक्षा पारभविक है। असंख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य में उपशम सम्यक्त्व नारक जीवों की तरह होता है और क्षायोपशमिक सम्यक्त्व तद्भवसम्बन्धी होता है, क्योंकि क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी तिर्यंच व मनुष्य मरकर वैमानिक देव में ही जाते हैं, अन्यत्र नहीं। जो तिर्यंच व मनुष्य मिथ्यादृष्टि अवस्था में युगलिक मनुष्य की आयु बाँधने के पश्चात् क्षायोपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं वे मृत्यु के समय सम्यक्त्व का वमन (मिथ्यात्व की स्पर्शना) करके ही मरते हैं। अत: वहाँ उत्पन्न होने के बाद कर्मग्रन्थ के मतानुसार जीव मिथ्यात्वी ही रहते हैं। उन्हें पारभविक क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पुन: प्राप्त नहीं होता। सिद्धान्त के मतानुसार तो युगलिक में भी पारभविक क्षयोपशम सम्यक्त्व होता है। क्योंकि संख्याता वर्ष की आयु वाले बद्धायु क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी युगलिक मनुष्य में पैदा होते • युगलिक तिर्यंचों में तीनों सम्यक्त्व होते हैं। उनकी प्राप्ति युगलिक मनुष्य की तरह समझना चाहिये। • शेष चार नरक-पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमस्प्रभा, तमस्तमप्रभा, युगलिक पंचेन्द्रिय-तिर्यंच, उनकी स्त्रियाँ तथा भवनपति, व्यंतर व ज्योतिषी देवों में क्षायिक सम्यक्त्व दोनों भव सम्बन्धी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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