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________________ द्वार १४९ १०२ 0000000000 उपदेश से ही धर्म के प्रति रुचि वाला बन जाता है। जैसे चिलातीपुत्र को उपशम, विवेक और संवर इन तीन पदों के श्रवणमात्र से ही तत्त्व रुचि पैदा हो गई थी। यहाँ मूल में 'अणभिग्गहिय कुदिट्ठी' तथा 'अणभिग्गहियो य सेसेसु' इस प्रकार दो बार 'अनभिगृहीत' शब्द का प्रयोग हुआ है। इसमें प्रथम 'अनभिगृहीत' का अर्थ है, अन्यमतों के स्वीकार का निषेध तथा द्वितीय का अर्थ है अन्यमत सम्बन्धी ज्ञानमात्र का भी निषेध । विशेष ज्ञान न होने से जिसे न तो जिनमत का पक्षपात है, न अन्यमत का, ऐसे आत्मा को संक्षेप में धर्म-श्रवण करने से ही रुचि पैदा हो जाती है ॥९५९ ॥ १०. धर्म-रुचि—जो आत्मा धर्मास्तिकाय आदि के गति सहायक आदि स्वभाव में, अंगप्रविष्टादि आगमरूप श्रुत-धर्म में तथा सामायिकादि चारित्र-धर्म में जिन-वचन के अनुसार श्रद्धा रखता है वह धर्म-रुचि सम्यक्त्व है। पूर्वोक्त दस भेद शिष्यों के बुद्धि-विकास के लिये कहे गये हैं। अन्यथा निसर्ग, उपदेश या अधिगम में इनका अन्तर्भाव हो सकता है ॥९६० ।। नारकादि में सम्यक्त्व-रत्न-प्रभा, शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा में क्षायिक, औपशमिक, और वेदक (क्षायोपशमिक) ये तीन सम्यक्त्व होते हैं। • यहाँ वेदक का अर्थ है कि जिस सम्यक्त्व में सम्यक्त्व के पुद्गलों का अनुभव हो, ऐसा सम्यक्त्व क्षायोपशमिक ही है। औपशमिक और क्षायिक में तो पद्गलों का वेदन होता ही नहीं है और 'वेदक' सम्यक्त्व का क्षायोपशमिक में ही समावेश हो जाता है। क्योंकि पुद्गल का ‘वेदन' दोनों में समान है। • अनादि मिथ्यादृष्टि नारक को सर्वप्रथम अन्तर्मुहूर्त प्रमाण औपशमिक सम्यक्त्व होता है, उसके । बाद शुद्ध सम्यक्त्व-पुंज के पुद्गलों का वेदन करने से क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है। ये ताद्भविक हैं। • क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी मनुष्य या तिर्यंच नरक में उत्पन्न होता है तो उसे वहाँ क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पारभविक (परभव-सम्बंधी) होता है। सैद्धान्तिक मते-विराधित सम्यक्त्वी जीव सम्यक्त्व लेकर छठी नरक तक जा सकता है। • कर्मग्रन्थ के मतानुसार तिर्यंच या मनुष्य वैमानिक देव के सिवाय अन्य किसी भी गति में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व लेकर नहीं जा सकते उसे वमन करके ही जाते हैं। इसके अनुसार नरक में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पारभविक नहीं हो सकता, ताद्भविक ही होता है। क्षायिक सम्यक्त्व पारभविक ही होता है। जैसे कोई मनुष्य नरकायु बांधने के पश्चात् क्षपक श्रेणि आरंभ करता है तो वह केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। परन्तु दर्शन सप्तक का क्षय करके क्षायिक सम्यक्त्व अवश्य प्राप्त कर लेता है। पश्चात् आयु पूर्ण होने पर मरकर नरक में जाता है। वहाँ वह क्षायिक सम्यक्त्व लेकर जाता है। इस प्रकार प्रथम तीन नरक में पार भविक क्षायिक सम्यक्त्व होता है। नरक में तद्भव सम्बन्धी क्षायिक सम्यक्त्व नहीं हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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