SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वार १४९ २ ० .. ..... तथा त्रिविध देवों के क्षायिक सम्यक्त्व नहीं होता। शेष जीवों में इन तीन सम्यक्त्व में से एक भी सम्यक्त्व नहीं होता ।। ९६१-६२॥ -विवेचन अपेक्षा भेद से एकविध, द्विविध, त्रिविध, चतुर्विध, पंचविध और दशविध भी सम्यक्त्व है। • एकविध-तत्त्वार्थश्रद्धारूप सम्यक्त्व। • द्विविध-द्रव्य और भाव से दो प्रकार का सम्यक्त्व है। अध्यवसायों की विशुद्धि के द्वारा ___ शुद्ध किये हुए मिथ्यात्व के पुद्गल द्रव्य सम्यक्त्व है। • शुद्ध किये हुए पुद्गलों से जन्य जीव का श्रद्धा रूप परिणाम भाव सम्यक्त्व है। निश्चय और व्यवहार के भेद से भी दो प्रकार का सम्यक्त्व है। नैश्चयिक-देश-काल व संहनन के अनुरूप अविकल मुनि-आचार । व्यावहारिक-उपशम आदि लक्षणों से गम्य केवल शुभ आत्म-परिणाम ही सम्यक्त्व नहीं है किन्तु परमात्मा के शासन के प्रति प्रीति, सम्मान रखना भी कारण में कार्य के उपचार से सम्यक्त्व कहलाता है। कारण अन्ततोगत्वा विशुद्ध आत्माओं के लिए यह भी मोक्ष का साधक है । कहा है-मुनिपन सम्यक्त्व है और जो सम्यक्त्व है वही मुनिपन है। यह निश्चय सम्यक्त्व है। किन्तु व्यवहारनय के अनुसार सम्यक्त्व व सम्यक्त्व के जो कारण हैं वे भी सम्यक्त्व हैं। यदि जिनमत का अनुसरण करना हो तो व्यवहार और निश्चय दोनों को मानना होगा। व्यवहार को नहीं मानने से भविष्य में तीर्थ (शासन) के नाश का प्रसंग आ सकता है। व्यवहारनयमतमपि च प्रमाणं, तद्बलेनैव तीर्थप्रवृत्ते: अन्यथा तदुच्छेदप्रसंगात् । जैनशासन में व्यवहारनय भी प्रमाणरूप है क्योंकि उसी के आधार पर तीर्थप्रवर्तन होता है। व्यवहारनय को न मानने पर तीर्थनाश का प्रसंग आ सकता है। इस प्रकार पौद्गलिक व अपौद्गलिक, नैसर्गिक व अधिगम के भेद से भी द्विविध सम्यक्त्व है। (i) पौद्गलिक-जिसमें सम्यक्त्व के पुद्गलों का वेदन होता है, ऐसा क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पौद्गलिक है। (ii) अपौगलिक-मिथ्यात्व. मिश्र और समकित इन तीनों के पदलों के क्षय या उपशम से वाला आत्म-परिणाम रूप क्षायिक या उपशम सम्यक्त्व है। नैसर्गिक व अधिगम सम्यक्त्व का स्वरूप आगे कहा जायेगा। त्रिविध-कारक, रोचक व दीपक अथवा औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक । चतुर्विध–औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक व सास्वादन । पंचविध–वेदक सहित पूर्वोक्त चार । दशविध—पूर्वोक्त पाँचों सम्यक्त्व निसर्ग व अधिगम के भेद से द्विविध होने से सम्यक्त्व के दस प्रकार हैं। एक प्रकार-विविध-उपाधियों से रहित अज्ञान, संशय और विपर्यास से शून्य 'यही तत्त्व है' ऐसा जिन प्रणीत तत्त्वों के प्रति दृढ़ श्रद्धान एकविध सम्यक्त्व है। दो प्रकार-नैसर्गिक-तीर्थकर व गुरु आदि के उपदेश, प्रतिमा दर्शन आदि निमित्तों के बिना स्वभावत: तत्त्वरुचि पैदा होना (नारकादिवत्) नैसर्गिक सम्यक्त्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy