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________________ प्रवचन-सारोद्धार Horoscopedio B D : आगमोक्त अनुष्ठान करना कारक सम्यक्त्व है। श्रद्धा करना रोचक सम्यक्त्व है। मिथ्यादृष्टि आत्मा जो तत्त्व का दीपन करता है वह दीपक सम्यक्त्व है ।। ९४६ ॥ क्षायिकादि तीन और सास्वादान ये सम्यक्त्व के चार प्रकार हैं। सास्वादान सम्यक्त्व, सम्यक्त्व से पतित जीव को मिथ्यात्व प्राप्ति से पूर्व होता है ।। ९४७ ॥ वेदक सम्यक्त्व सहित पूर्वोक्त चार, सम्यक्त्व के पाँच प्रकार हैं। सम्यक्त्व मोह के अन्तिम दलिकों का भोग करते समय वेदक सम्यक्त्व होता है।। ९४८ ॥ पूर्वोक्त पाँचों सम्यक्त्व निसर्ग और अधिगम के भेद से दो-दो प्रकार के होने से सम्यक्त्व के दस प्रकार होते हैं। अथवा आगमोक्त निसर्गरुचि आदि के भेद से भी सम्यक्त्व के दस प्रकार होते हैं। ९४९ ॥ १. निसर्गरुचि २. उपदेशरुचि ३. आज्ञारुचि ४. सूत्ररुचि ५. बीजरुचि ६. अधिगम रुचि ७. विस्ताररुचि ८. क्रियारुचि ९. संक्षेपरुचि एवं १०. धर्मरुचि ॥ ९५० ॥ जिनेश्वरों द्वारा दृष्ट पदार्थों को द्रव्यादि चारों भेद से श्रद्धा करना। यथा 'यह पदार्थ ऐसा ही है अन्यथा नहीं हो सकता'-यह निसर्गरुचि है।। ९५१ ।। जिनेश्वर परमात्मा अथवा अन्य द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों पर श्रद्धा करना उपदेशरुचि सम्यक्त्व है।। ९५२ ॥ जिनके राग, द्वेष, मोह और अज्ञान का नाश हो चुका है ऐसे जीवों की जिनाज्ञा में रुचि वह आज्ञारुचि सम्यक्त्व है ।। ९५३ ॥ अंगसूत्र या अंगबाह्य-सूत्रों का अध्ययन करते-करते जिनप्ररूपित तत्त्वों के प्रति जो श्रद्धाभाव पैदा होता है वह सूत्ररुचि सम्यक्त्व है ।। ९५४ ।। जल में तेलबिंदु की तरह एक पद के द्वारा अनेक पदों में जो श्रद्धा उत्पन्न होती है वह बीजरुचि सम्यक्त्व है।। ९५५ ।। ____ ग्यारह अंग, प्रकीर्णकसूत्र तथा दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान जिसने अर्थ से पढ़े हों उसका सम्यक्त्व अधिगमरुचि कहलाता है ।। ९५६ ।। सभी नय और सभी प्रमाणों के द्वारा जिसने समस्त द्रव्य और पर्यायों का ज्ञान कर लिया है वह विस्ताररुचि सम्यक्त्व है।। ९५७ ।। ज्ञान, दर्शा चारित्र, तप, विनय, समिति एवं गुप्तिरूप क्रिया में भाव से रुचि होना, क्रियारूचि सम्यक्त्व है।। ९५८ ॥ अन्य दर्शन के प्रति अनभिगृहीत, जिनशासन में अकुशल तथा अन्य दर्शनों को उपादेय न मानने वाला संक्षेपरुचि सम्यक्त्व है।। ९५९ ॥ जो आत्मा जिनोक्त अस्तिकायधर्म, श्रुतधर्म एवं चारित्रधर्म की श्रद्धा करता है....स्वीकार करता है वह धर्मरुचि सम्यक्त्व है।। ९६० ।। प्रथम तीन नरक में १. क्षायिक २. औशमिक और ३. वेदक-ये तीन सम्यक्त्व होते हैं। वैमानिक देव और पंचेन्द्रिय तिर्यंच में भी ये तीन सम्यक्त्व हैं। शेष नरक जीवों के, तिर्यंचस्त्रियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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