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________________ 228 ९४ द्वार १४९ छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइत्ति नायव्वो ॥ ९५२ ॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥ ९५३॥ जो सुत्तमहिज्जतो सुएणमोगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइत्ति नायव्वो ॥ ९५४ ॥ Tuesगाई पयाइं जो पसरई उ सम्मत्ते । उदव्व तिल्लबिंदू सो बीयरुइत्ति नायव्वो ॥ ९५५ ॥ सो होइ अहिगमरुई सुयनाणं जस्स अत्थओ दिट्ठे । एक्कारस अंगाई पइन्नगा दिट्टिवाओ य ॥ ९५६ ॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा । सव्वाहिं नयविहीहिं वित्थाररुई मुणेयव्वो ॥ ९५७ ॥ नाणे दंसणचरणे तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु । जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई नाम ॥ ९५८ ॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइत्ति होइ नायव्वो । अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसुं ॥ ९५९ ॥ जो अस्थिका धम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च । सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइत्ति नायव्वो ॥ ९६० ॥ आईपुढवीसुतीसु खय उवसम वेयगं च सम्मत्तं । वेमाणियदेवाणं पणिदितिरियाण एमेव ॥ ९६१ ॥ सेसाण नारयाणं तिरियत्थीणं च तिविहदेवाणं । नथ हु खइयं सम्मं अन्नेसिं चेव जीवाणं ॥ ९६२ ॥ - गाथार्थ - सम्यक्त्व के प्रकार — द्रव्य, कारक, उपशम आदि भेदों के द्वारा सम्यक्त्व के एक, दो, तीन, चार, पाँच और दस प्रकार होते हैं ।। ९४२ ।। 'सम्यक्त्वरुचि' यह एक प्रकार है। निसर्ग और अधिगम ये दो प्रकार हैं। क्षायिक आदि अथवा कारक आदि तीन प्रकार हैं ।। ९४३ ॥ सम्यक्त्व मोह, मिश्रमोह और मिथ्यात्वमोह के क्षय से जन्य सम्यक्त्व क्षायिक है । मिथ्यात्वमोह के क्षयोपशम से जन्य सम्यक्त्व क्षायोपशमिक है ।। ९४४ ॥ मिथ्यात्वमोह के उपशम को सिद्धान्तविद् उपशम समकित कहते हैं । यह सम्यक्त्व उपम श्रेणी में तथा प्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय होता है ।। ९४५ ।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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