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________________ प्रवचन-सारोद्धार 1200084.33ccepal (५) एकाग्रतापूर्वक (इन पाँच अभिगमसहित), 'निस्सीहि' कहते हुए, मन्दिर में प्रवेश करें। श्री भगवती सूत्र में भी ‘सच्चित्ताणं दव्वाणं...' इत्यादि से पाँच अभिगमपूर्वक मन्दिर में प्रवेश करने का कहा है। श्री भगवती सूत्र में जहाँ 'अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए' के स्थान पर 'विउसरणयाए' ऐसा पाठ है, वहाँ विउसरणयाए का अर्थ है—'अचित्त' का त्याग करके अर्थात् छत्रादि राजचिह्नों का त्याग करके मन्दिर में प्रवेश करे । • यदि चैत्यवन्दन करने वाला राजा है तो सचित्तद्रव्यों की तरह अपने छत्रादि अचित्त राजचिह्नों का भी त्याग करके मन्दिर में प्रवेश करे । सिद्धान्त में कहा है कि- राजा राज्य के चिह्न रूप खड्ग, जूते, छत्र, चामर और मुकुट इन पाँचों का त्याग करके मन्दिर में प्रविष्ट हो। प्रथम निस्सीहि त्रिक (i) प्रथम निस्सीहि मन्दिर के बाह्य द्वार पर, घर सम्बन्धी व शरीर सम्बन्धी कार्यों के त्याग हेतु करे। (ii) दूसरी निस्सीहि मन्दिर के मध्य भाग में, घर सम्बन्धी बातचीत के त्याग हेतु करे। (iii) तीसरी निस्सीहि मन्दिर के मूल द्वार पर, घर सम्बन्धी व शरीर सम्बन्धी चिन्तन के त्याग रूप करे। ग्रन्थकार के मतानुसार (१) प्रथम ‘निस्सीहि' घर सम्बन्धी सावध कार्यों के निषेधरूप है। यह जिन मन्दिर में प्रवेश करते ही बोली जाती है। (२) दूसरी 'निस्सीहि' जिन-मन्दिर विषयक सावद्य-कार्य पत्थर वगैरह घड़वाना, मन्दिर की सफाई वगैरह करवाना इत्यादि कार्यों के निषेधरूप है। यह तीन प्रदक्षिणा देने के बाद बोली जाती है। (३) तीसरी 'निस्सीहि' द्रव्य-पूजा करने के निषेधरूप है। यह ‘निस्सीहि' जिनेश्वर भगवान की द्रव्य पूजा करने के पश्चात् तथा भावपूजा करने से पहले बोली जाती है। द्वितीय प्रदक्षिणा त्रिक ज्ञान-दर्शन-चरित्र की आराधना के लिये जिनेश्वर भगवान की दाहिनी तरफ से प्रारम्भ कर तीन बार परिक्रमा करना, प्रदक्षिणा त्रिक है । कल्याण के इच्छुक आत्मा को प्रत्येक शुभ कार्य दाहिनी तरफ से ही करना चाहिये। तीसरा प्रणाम त्रिक प्रभु की प्रतिमा के सम्मुख हार्दिक भक्ति-भाव व्यक्त करने के लिये मस्तक से भूमि को छूते हुए तीन बार नमन करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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