________________
प्रवचन-सारोद्धार
२५
::::00
:55000202005052
दोनों हाथों को कमलाकार बनाकर ललाट को छूते हुए रखना मुक्ताशुक्ति मुद्रा है। किसी का मत है कि हाथों को ललाट से दूर रखना चाहिये ॥ ६६-७६ ।।
___ अवग्रह-पुरुष प्रतिमा की दाहिनी तरफ एवं स्त्री प्रतिमा की बांई तरफ उत्कृष्ट से साठ हाथ एवं जघन्य से नौ हाथ (शेष मध्यम) दर रहकर परमात्मा को वन्दन करे॥ ७७॥
नवकारमंत्र, इरियावहि तथा अरिहंतचेइयाणं की आठ-आठ, शक्रस्तव की नौ, लोगस्स की अट्ठावीस, पुक्खरवरदीवड्डे की सोलह और सिद्धाणं बुद्धाणं की बीस सम्पदा है।। ७८ ।।। __नवकारमंत्र की सम्पदा-नवकारमंत्र में प्रथम सात सम्पदायें एक-एक पद की हैं और अन्तिम आठवीं सम्पदा सतरह अक्षर की है॥ ७९ ॥
नवकारमंत्र की अंतिम तीन चूलिकायें क्रमश: सोलह, आठ और नौ अक्षर की हैं। भक्तियुक्त हदय से उसे जो पढ़ता है, वह शाश्वत स्थान को प्राप्त करता है।
सम्पदा के प्रथम पदों का ज्ञान होने से अन्य पदों का ज्ञान सहज हो जाता है अत: इस गाथा में इरियावहियं की आठ सम्पदा के प्रथम पद बताये जाते हैं। ८० ॥
इरियावहियं की सम्पदा-१. इच्छामि पडिक्कमिडं, २. गमणागमणे, ३. पाणक्कमणे, ४. ओसाउत्तिंग, ५. जे मे जीवा विराहिया, '६. एगिदिया, ७. अभिहया, ८. तस्स उत्तरीकरणेणं से लेकर ठामि काउस्सग्गं पर्यन्त ।। ८१॥
नमुत्थुणं की सम्पदा-१. अरिहंताणं, २. आइगराणं, ३. पुरिसुत्तमाणं, ४. लोगुत्तमाणं, ५. अभयदयाणं, ६. धम्मदयाणं, ७. अप्पडिहय, ८. जिणाणं-जावयाणं, ९. सव्वन्नूणं इत्यादि शक्रस्तव की सम्पदा के प्रथम पद है।। ८२ ।। अरिहंतचेइयाणं की सम्पदा
___'अरिहंतचेइयाणं' की सम्पदाओं के प्रथम पद निम्न हैं-१. अरिहं, २. वंदण, ३. सद्धा, ४. अन्नत्थ, ५. सुहुम, ६. एव, ७. जा, ८. ताव ॥
नामस्तव, श्रुतस्तव तथा सिद्धस्तव की सम्पदायें-नामस्तव (लोगस्स), श्रुतस्तव (पुक्खरवरदीवड्डे) तथा सिद्धस्तव (सिद्धाणं बुद्धाणं) की क्रमश: अट्ठावीस, सोलह और वीस सम्पदा है ।। ८३ ॥
चैत्यवन्दन के बारह अधिकार-शक्रस्तव के दो, चैत्यस्तव के एक, नामस्तव के दो, श्रुतस्तव के दो तथा सिद्धस्तव के पाँच अधिकार हैं।। ८४॥
बारह अधिकार के ‘आदि' पद-(१) नमोत्थुणं, (२) जे अईयासिद्धा, (३) अरिहंत चेइयाणं, (४) लोगस्स, (५) सव्वलोए, (६) पुक्खरवरदीवड्डे, (७) तमतिमिर, (८) सिद्धाणं बुद्धाणं, (९) जो देवाणवि देवो, (१०) उज्जितसेलसिहरे, (११) चत्तारि अट्ठ दस दोय, (१२) वेयावच्चगराणं ये बारह अधिकारों के आदि पद हैं।। ८५-८६ ।। ___कौन से अधिकार में किसको वन्दन है?–पहिले, छठे, नौवें, दशवें तथा ग्यारहवें अधिकार में भावजिन की, तीसरे और पाँचवें अधिकार में स्थापना जिन की, सातवें अधिकार में ज्ञान की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org