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________________ २४ द्वार १ साहूण सत्तवारा होइ अहोरत्तमज्झयामि। गिहिणो पुण चिइवंदण तिय पंच य सत्त वा वारा ॥ ८९ ॥ पडिक्कमणे चेइहरे भोयणसमयंमि तह य संवरणे। पडिक्कमण सुयण पडिबोहकालियं सत्तहा जइणो ॥ ९० ॥ पडिक्कमओ गिहिणो वि हु सत्तविहं पंचहा उ इयरस्स। होइ जहन्नेण पुणो तीसुवि संझासु इय तिविहं ॥ ९१ ॥ नवकारेण जहन्ना दण्डकथुइजुअलमज्झिमा नेया। उक्कोसाविहिपुव्वगसक्कत्थयपंचनिम्माया ॥ ९२ ॥ -गाथार्थदशत्रिक का स्वरूप—(१) तीन निस्सीहि (२) तीन प्रदक्षिणा, (३) तीन प्रणाम, (४) तीन पूजा, (५) तीन अवस्थाओं की भावना, (६) तीन दिशाओं के निरीक्षण का त्याग, (७) तीन बार भूमि की प्रमार्जना, (८) वर्णादि त्रिक, (९) मुद्रात्रिक और (१०) प्रणिधानत्रिक। जो आत्मा दशत्रिक का पालन करते हुए, उपयोगपूर्वक जिनेश्वर परमात्मा की त्रिकाल वन्दना करते हैं वे विपुल निर्जरा के भागी बनते हैं। घर सम्बन्धी, मन्दिर सम्बन्धी तथा जिन पूजा सम्बन्धी व्यापार-प्रवृत्ति के त्याग रूप क्रमश: तीन निसीहि समझना चाहिये। पूजा के तीन प्रकार—पुष्प पूजा, अक्षत पूजा, एवं स्तुति रूप तीन पूजा है। परमात्मा की छद्मस्थ, केवली तथा सिद्धरूप अवस्थाओं का चिन्तन करना अवस्थात्रिक है। अक्षर-उपयोग, अर्थ-उपयोग तथा प्रतिमा-उपयोग रूप आलंबनत्रिक है। जिनमुद्रा, योगमुद्रा और मुक्ताशुक्ति मुद्रा रूप मुद्रात्रिक है। मन-वचन और काया का निरोध रूप प्रणिधानत्रिक है। योगमुद्रा से पञ्चाङ्ग नमस्कार तथा स्तवपाठ होता है। जिनमुद्रा से वंदन तथा मुक्ताशुक्ति मुद्रा से प्रणिधान सूत्र बोला जाता है। दो जानु, दो हाथ और मस्तक इन पाँच अङ्गों को एकत्रित कर किया जाने वाला नमस्कार पञ्चाङ्ग प्रणिपात कहलाता है। दोनों हाथों की दस अङ्गलियों को परस्पर एक-दूसरी के अन्तराल में डालकर, कमलवत् दोनों हाथों का आकार बनाकर कोहनियों को पेट पर रखना योगमुद्रा है। दोनों पाँवों को इस तरह रखना कि दोनों अङ्गठों के मध्य चार अङ्गल का अन्तर रहे और एड़ियों के बीच चार अङ्गल से कुछ कम अन्तर रहे-यह जिनमुद्रा है। इसका उपयोग कायोत्सर्ग करते समय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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