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प्रवचन-सारोद्धार
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दाहिणवामंगठिओ नरनारिणोऽभिवंदए देवे। उक्किट्ठ सट्ठिहत्थुग्गहे जहन्नेण करनवगे ॥ ७७ ॥ अट्ठट्ठनवट्ठ य अट्ठवीस सोलस य वीस वीसामा। मंगल इरियावहिया सक्कत्थयपमुहदंडेसु ॥ ७८ ॥ पंचपरमेट्ठिमंते पए पए सत्त सम्पया कमसो।। पज्जन्तसत्तरक्खरपरिमाणा अट्ठमी भणिआ॥ ७९ ॥ (अंतिम चूलाइतियं सोलस अट्ठ नवक्खर जुयं चेव। जो पढइ भत्तिजुत्तो सो पावइ सासयं ठाणं ॥) इच्छ गम पाण ओसा जे मे एगिदि अभिहया तस्स। इरियाविस्सामेसुं पढमपया हुंति दट्ठव्वा ॥ ८० ॥ अरिहं आइग पुरिसो लोगोऽभय धम्म अप्प जिण सव्वा । सक्कत्थयसंपयाणं पढमुल्लिगणपया नेया ॥ ८१ ॥ अरिहं वंदण सद्धा अण्णत्यू सुहुम एव जा ताव । अरिहंतचेइयथए विस्सामाणं पया पढ़मा ॥ ८२ ॥ अट्ठावीसा सोलस वीसा य जहक्कमेण निद्दिट्ठा। नामजिणट्ठवणाइसु वीसामा पायमाणेणं ॥ ८३ ॥ दुण्णेगं दुण्णि दुगं पंचेव कमेण हुति अहिगारा। सक्कत्थयाइसु इहं थोयव्वविसेसविसया उ ॥ ८४ ॥ पढमं नमोऽत्थु जे अइयसिद्ध अरहंतचेइयाणंति। लोगस्स सव्वलोए पुक्खर-तमतिमिर सिद्धाणं ॥ ८५ ॥ जो देवाणवि उज्जितसेल चत्तारि अट्ठ दस दोय । वेयावच्चगराण य अहिगारुल्लिगणपयाइं ॥ ८६ ॥ पढमे छठे नवमे दसमे एक्कारसे य भावजिणे । तइयंमि पंचमंमि य ठवणजिणे सत्तमे नाणं ॥ ८७ ॥ अट्ठमबीयचउत्थेसु सिद्धदव्वारिहंतनामजिणे । वेयावच्चगरसुरे सरेमि बारसमअहिगारे ॥ ८८ ॥
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