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१. द्वार :
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द्वार १
चैत्यवन्दन
तिन्नि नीसीहिय तिन्नि य पयाहिणा तिन्नि चेव य पणामा । *तिविहा पूया य तहा अवत्थतियभावणं चेव ॥ ६६ ॥ तिदिसिनिरिक्खणविरई तिविहं भूमिपमज्जणं चेव । वन्नाइतियं मुद्दातियं च तिविहं च पणिहाणं ॥ ६७ ॥ इय दहतियसंजुत्तं वंदणयं जो जिणाण तिक्कालं । कुणइ नरो उवउत्तो सो पावइ निज्जरं विउलं ॥ ६८ ॥ घरजिणहरजिणपूआवावारच्चायओ निसीहितिगं। पुफ्फक्खयत्थुईहिं तिविहा पूया मुणेयव्वा ॥ ६९ ॥ होइ छउमत्थकेवलीसिद्धत्तेहिं जिणे अवत्थतिगं । वन्नत्थाऽऽलंबणओ वन्नाइतियं वियाणिज्जा ॥ ७० ॥ जिणमुद्दा जोगमुद्दा मुत्तासुत्ती उ तिन्नि मुद्दाओ । कायमणोवयणनिरोहणं च तिविहं च पणिहाणं ॥ ७१ ॥ पंचंगो पणिवाओ थयपाढ़ो होई जोगमुद्दाए । वंदण जिणमुद्दा पणिहाणं मुत्तसुत्तीए ॥ ७२ ॥ दो जाणू दुन्नि करा पंचमगं होई उत्तमंगं तु । संमं संपणिवाओ नेओ पंचगपणिवाओ ॥ ७३ ॥ अन्नोऽन्नंतर अंगुलि कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं । पेट्टोवरिकुप्परसंठिएहिं तह जोगमुद्दत्ति ॥ ७४ ॥ चत्तारि अङ्गुलाई पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ । पायाणं उस्सग्गे एसा पुण होई जिणमुद्दा ॥ ७५ ॥ मुत्तासुत्तमुद्दा समाजहिं दोवि गब्भिया हत्था । ते पुण निलाडदेसे लग्गा अण्णे अलग्गति ॥ ७६ ॥
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