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________________ प्रवचन - सारोद्धार २६५. श्रीभद्रकृत्तीर्थप्रमाण २६६. देव- प्रविचार २६७. कृष्णराजी २६८. अस्वाध्याय २६९. नन्दीश्वरद्वीप २७०. लब्धियाँ २७१. विविध तप असज्झाय का स्वरूप | आठवें नन्दीश्वरद्वीप का वर्णन । आमर्ष औषधि आदि अट्ठाइस प्रकार की लब्धियां । इन्द्रियजय आदि अनेकविध तप । २७२. पातालकलश समुद्र के मध्य में रहने वाले पातालकलशों का वर्णन | आहारक शरीर का स्वरूप । २७३. आहारक शरीर २७४ अनार्यदेश अनार्यदेश का स्वरूप व नाम । २७५. आर्यदेश आर्यदेश का स्वरूप व नाम । सिद्धों के इकतीस गुण । २७६. सिद्धगुण पूर्वोक्त द्वार आगमग्रन्थों से उद्धृत हैं । यह ग्रन्थ इन्हीं द्वारों की व्याख्यारूप है । समय समुद्धरियाणं आसत्थ समत्तिमेसि दाराणं । " भगवान महावीर का शासन काल । देवताओं की मैथुन की प्रक्रिया । आठ कृष्णराजियों का स्वरूप । Jain Education International नामुक्कित्तण पुव्वा तव्विसय वियारणा नेया ॥ ६५ ॥ पूर्वोक्त द्वार आगमों से उद्धृत है। प्रस्तुत ग्रन्थ की समाप्ति पर्यन्त इन्हीं द्वारों का विवेचन किया जायेगा । २१ For Private & Personal Use Only x *x *x www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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