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________________ प्रवचन-सारोद्धार १४९. सम्यक्त्व १५०. कुलकोटि १५१. जीव-योनि १५२. त्रैलोक्यवृत्त-विवरण १५३. श्राद्धप्रतिमा १५४. अबीजत्व १५५. क्षेत्रातीत-अचित्तत्व १५६. धान्यसंख्या १५७. मरण १५८. पल्योपम १५९. सागरोपम १६०. अवसर्पिणी १६१. उत्सर्पिणी १६२. पुद्गलपरावर्त १६३. कर्मभूमि १६४. अकर्मभूमि - द्विविध, त्रिविध, चतुर्विध, दशविध सम्यक्त्व । - जीवों की कुलकोटि। - जीवों की चौरासी लाख योनियाँ । - षड्द्रव्य संबंधी वर्णन। श्रावक सम्बन्धी ग्यारह प्रतिमा । - धान्य की अचित्तता। - नमक आदि सचित्त पदार्थ कितना क्षेत्र उल्लंघन करने के पश्चात् अचित्त बनते हैं? - चौबीस प्रकार के धान्य । - सत्तरह प्रकार का मरण । पल्योपम का स्वरूप । - अतर = जिसे तरना शक्य न हो वह 'अतर' अर्थात् सागर । जिस कालखण्ड की तुलना सागर से की जाती है वह सागरोपम है, उसका स्वरूप। --- अवसर्पिणी का स्वरूप। - उत्सर्पिणी का स्वरूप। - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से चार प्रकार का पुद्गलपरावर्त । -- पन्द्रह कर्मभूमियाँ, जहाँ तीर्थंकर उत्पन्न होते हैं । - जहाँ 'धर्म' शब्द सुनने को नहीं मिलता, ऐसी तीस अकर्मभूमियां हैं। - आठ मद। - दो सौ तैयालीस प्राणातिपात (हिंसा) के भेद ।। --- परिणाम = अध्यवसाय विशेष के एक सौ आठ भेद । - ब्रह्मचर्य के अठारह भेद । -- काम के चौबीस भेद । दस प्राण। दस कल्पवृक्ष । सात नरक। - नरक के जीवों के रहने के स्थान । - नारकों की वेदना। - नारकों की आयु । - नारकों का शरीर प्रमाण। १६५. मद १६६. प्राणातिपात-भेद १६७. परिणाम-भेद १६८. ब्रह्मचर्य-भेद १६९. काम १७०. प्राण १७१. कल्पवृक्ष १७२. नरक १७३. नरकावास १७४. नरक-वेदना १७५. नरकायु १७६. अवगाहना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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