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________________ १६ . द्वार नामावली 150000studici00000000000000220258888850-32003002:23 : १२०. सुखशय्या १२१. क्रियास्थान १२२. आकर्ष १२३. शीलांग १२४. सप्तनय १२५. वस्त्रविधान १२६. व्यवहार-५ १२७. यथाजात १२८. जागरण १२९. आलोचनादायक १३०. प्रतिजागरणा १३१. उपधिप्रक्षालन १३२. भोजनभाग १३३. वसतिशुद्धि १३४. संलेखना १३५. वसतिग्रहण १३६. सचित्तता कालमान १३७. स्त्रियां - चार प्रकार की सुखशय्या। - तेरह क्रियास्थान। - सम्यक्त्व आदि चारों सामायिकों की एक व अनेक भव सम्बन्धी 'आकर्ष' संख्या। - ब्रह्मचर्य के अठारह हजार अंग। - नैगमादि सात नय। - वस्त्र ग्रहण करने की विधि । - आगमादि पाँच प्रकार के व्यवहार । -- पाँच प्रकार के यथाजात । - रात में जागने की विधि । - आलोचनादाता गुरु की खोज। - गुरु आदि की सेवा-शुश्रूषा करने की विधि । - उपधि धोने का समय। - पेट के छ: भागों में से भोजन के कितने भाग हैं? - वसति सम्बन्धी कल्प्याकल्प्य । - संलेखना की विधि। - वसति ग्रहण करने की विधि । - उष्णजल कितने समय बाद पुन: अचित्त हो जाता है? -- मनुष्य, तिर्यंच और देव में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ कितना गुणा अधिक हैं तथा कुल स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा कितना गुणा हैं ? यह बताना। -- दश आश्चर्य इस अवसर्पिणीकाल के। - चार प्रकार की भाषा । - सोलह प्रकार के वचन । - मास (महीना) के पाँच भेद। - वर्ष के पाँच भेद। - चौदह राजलोक प्रमाण लोक का स्वरूप। - तीन प्रकार की संज्ञा । - चार प्रकार की संज्ञा । - दश प्रकार की संज्ञा । - पन्द्रह प्रकार की संज्ञा । - सम्यक्त्व के सड़सठ प्रकार । १३८. आश्चर्य १३९. भाषा १४०. वचन-भेद १४१. मासभेद १४२. वर्षभेद १४३. लोकस्वरूप १४४. संज्ञा-३ १४५. संज्ञा-४ १४६. संज्ञा-१० १४७. संज्ञा-१५ १४८. सम्यक्त्व-भेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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