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प्रवचन-सारोद्धार
८९. क्षपकश्रेणि ९०. उपशमश्रेणि ९१. स्थण्डिल ९२. पूर्व १४ ९३. निर्ग्रन्थ-पञ्चक ९४. श्रमण-पञ्चक ९५. ग्रासैषणा-पञ्चक ९६. पिण्डैषणा-पानैषणा ९७. भिक्षाचर्या-विधि ९८. प्रायश्चित्त ९९. ओघसमाचारी १००. पदविभाग समाचारी १०१. चक्रवाल समाचारी १०२. भव निर्ग्रन्थत्व १०३. विहार-स्वरूप १०४. अप्रतिबद्ध-विहार
- कर्मों के नाश का क्रम । - कर्मों के उपशम का क्रम। - साधु योग्य स्थण्डिलभूमि के एक हजार चौबीस प्रकार । - पदसंख्या सहित चौदह पूर्वो के नाम । - निर्ग्रन्थ के पाँच प्रकार । - भिक्षु के पाँच प्रकार । - निर्दोष भोजन के पाँच प्रकार । - निर्दोष भिक्षा के सात प्रकार । - निर्दोष पानी ग्रहण के सात प्रकार । - प्रायश्चित्त का स्वरूप व भेद । - साधु-साध्वी सम्बन्धी सामान्य आचार । - छेदग्रन्थोक्त समाचारी। --- दश प्रकार की प्रतिदिन करणीय समाचारी-आचरण । - संसार में रहते हुए निर्ग्रन्थपना कितनी बार प्राप्त हो सकता है। - मुनियों के विहार का स्वरूप। -- द्रव्यादि की आसक्ति से रहित, गुरु आज्ञापूर्वक, मासकल्प करते
हुए विहार करना। - गीतार्थ व अगीतार्थ का आचार । - परठने व स्थंडिल आदि करने की दिशा। - दीक्षा के लिये अयोग्य पुरुष अट्ठारह । - दीक्षा के अयोग्य स्त्रियाँ बीस। - दीक्षा के अयोग्य नपुंसक दश । - विकलांग का स्वरूप । - कितने मूल्य का वस्त्र मुनियों को लेना कल्पता है। - शय्यातर पिण्ड का कल्प्याकल्प्य । - कितने सूत्र के ज्ञाता निश्चित सम्यक्त्वी होते हैं। - कौन से निर्ग्रन्थ मरकर चारों गतियों में जा सकते हैं। - क्षेत्रातीत का स्वरूप । - मार्गातीत का स्वरूप। - कालातीत का स्वरूप। - प्रमाणातीत का स्वरूप । - चार प्रकार की दुःखशय्या।
१०५. जाताजातकल्प १०६. प्रतिस्थापन-उच्चार दिशा १०७. दीक्षा-अयोग्य पुरुष १०८. दीक्षा-अयोग्य स्त्री १०९. दीक्षा-अयोग्य नपुंसक ११०. दीक्षा-अयोग्य विकलांग १११. कल्प्यवस्त्र-मूल्य ११२. शय्यातरपिण्ड ११३. श्रुत में सम्यक्त्व ११४. चातुर्गतिक निर्ग्रन्थ ११५. क्षेत्रातीत ११६. मार्गातीत ११७. कालातीत ११८. प्रमाणातीत. ११९. दुःखशय्या
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