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द्वार नामावली
६०. उपकरण संख्या ६१. स्थविर-उपकरण ६२. साध्वी-उपकरण ६३. जिनकल्पी संख्या
६४. आचार्यगुण ६५. विनय भेद ६६. चरण भेद ६७. करण भेद ६८. गमनशक्ति ६९. परिहारविशुद्धि ७०. यथालन्द ७१. निर्यामक ७२. शुभभावना ७३. अशुभभावना ७४. महाव्रत ७५. कृतिकर्म ७६. क्षेत्र में चारित्र संख्या
-- जिनकल्पियों के उपकरणों की संख्या। - गच्छवासी मुनियों की उपकरण संख्या। --- साध्वियों की उपकरण संख्या। - एक वसति में एक साथ रहने वाले जिनकल्पियों की उत्कृष्ट
संख्या। - आचार्य के छत्तीस गुण ।
बावन प्रकार का विनय । - चरण के सत्तर भेद। - करण के सत्तर भेद । ---- जंघाचारण, विद्याचारण मुनियों की गमनशक्ति । - परिहारविशुद्धितप व करने वाले तपस्वियों का स्वरूप । - यथालन्दकल्प (आचार) का स्वरूप। - अनशनी मुनि को आराधना कराने वाले निर्यामकों की संख्या। - पाँच महाव्रतों की पच्चीस शुभभावना। - पच्चीस अशुभ भावना। - महाव्रतों की संख्या। --- दिन में कितनी बार गुरुवन्दन करना। -- भरत आदि क्षेत्रों में चारित्र की संख्या । अर्थात् किस क्षेत्र में
कितने चारित्र होते हैं। - जिन साध्वाचारों का पालन चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के शासन
में नियमित रूप से होता हो। - जिन साध्वाचारों का पालन अनियमित हो। - पाँच प्रकार की प्रतिमा। - पाँच प्रकार की पुस्तक । - पाँच प्रकार के दण्ड। - पाँच प्रकार के तृण। – पाँच प्रकार के चर्म। - पाँच प्रकार के दूष्यवस्त्र । - पाँच प्रकार के अवग्रह। -- मोक्षार्थी आत्मा जो सहन करते हैं वे परिषह हैं। - ‘समूह बैठक' मण्डली है। इसके सात भेद हैं। - दश वस्तुओं का विच्छेद ।
७७. स्थितकल्प
७८. अस्थितकल्प ७९. चैत्य-पञ्चक ८०. पुस्तक-पञ्चक ८१. दण्ड-पञ्चक ८२. तृण-पञ्चक ८३. चर्म-पञ्चक ८४. दूष्य-पञ्चक ८५. अवग्रह-पञ्चक ८६. परिषह ८७. मण्डली ८८. व्यवच्छेद-१०
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