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प्रवचन - सारोद्धार
३५. अन्तरकाल
३६. तीर्थविच्छेद
३७. आशातना - १०
३८. आशातना-८४ ३९. प्रातिहार्य
४०. अतिशय
४१. अठारह दोष
४२. अर्हच्चतुष्क
४३. निष्क्रमण तप
४४. केवलज्ञान तप ४५. निर्वाण तप
४६.
भावी तीर्थंकर
४७. तीन लोक में सिद्ध
४८. एक समय में सिद्ध ४९. सिद्ध भेद
५०. अवगाहना
५१. लिंगसिद्ध
५२. निरन्तरसिद्ध
५३. तीन वेद सिद्ध ५४. संस्थान
५५. अवस्थान
५६. ५७. ५८. अवगाहना ५९. शाश्वत - जिननाम
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एक तीर्थंकर के सिद्धिगमन के पश्चात् कितने समय बाद दूसरे तीर्थंकर सिद्ध हुए । इस प्रकार चौबीस तीर्थंकरों का अन्तरकाल
बताना ।
साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकारूप चतुर्विध संघ का कब कहां व कितने समय तक विच्छेद रहा ?
ज्ञान-दर्शन व चारित्र के लाभ का नाश करने वाली दस आशातना । चौरासी आशातना का वर्णन ।
प्रतिहारियों के द्वारा निर्मित तीर्थंकर परमात्मा के आठ प्रातिहार्यों का वर्णन |
तीर्थंकर परमात्मा के चौतीस अतिशय । अर्हत्ता के विरोधी अठारह दोष ।
नाम आदि के भेद से अर्हन्त के चार भेद । तीर्थंकरों के दीक्षा के समय का तप ।
तीर्थंकरों के केवलज्ञान प्राप्ति के समय का तप ।
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तीर्थंकरों के निर्वाण समय का तप ।
भावी तीर्थंकरों के जीव ।
उर्ध्व, अधो व तिर्यक्लोक में सिद्ध होने वालों की संख्या । एकसाथ एक समय में सिद्ध होने वालों की संख्या । सिद्ध के पन्द्रह भेद ।
जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अवगाहना वाले जीव एक समय में कितने सिद्ध होते हैं ?
एक समय में गृहस्थवेश, साधुवेश तथा अन्यतीर्थिकवेश में सिद्ध होने वालों की संख्या ।
एक साथ कितने जीव कितने समय तक निरन्तर सिद्ध हो सकते हैं ? जैसे, एक से बत्तीस जीव आठ समय तक निरन्तर सिद्ध होते हैं। इस प्रकार तेतीस से लेकर एक सौ आठ तक निरन्तर सिद्ध होने वालों का वर्णन ।
तीनों वेदों में सिद्ध होने वालों की संख्या ।
सिद्धों का संस्थान - आकार ।
सिद्धों के रहने का स्थान ।
सिद्धों की जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट अवगाहना ।
चारों शाश्वत जिनप्रतिमाओं के नाम ।
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