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द्वार नामावली
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हमेशा धर्मवृद्धि और कल्याण के लिये होता है। परोपकार करने में तत्पर ऐसे प्राचीन श्रुतधरों द्वारा प्रतिपादित श्रुत के अनुस्मरणपूर्वक ही मैंने इस प्रकरण की रचना की है।' अत: यह प्रकरण परम्परया सर्वज्ञमूलक है।
इसमें मेरी ओर से नया कुछ भी नहीं रचा गया है। अत: (सर्वज्ञमूलक होने से ) यह प्रकरण निर्मलबुद्धि वाले भव्यजीवों के लिये अवश्यमेव उपादेय होगा।
प्रवचन के सारभूत पदार्थों का प्रतिपादन करने वाले २७६ द्वारों का ६४ गाथाओं के द्वारा वर्णन किया जाता है२७६ द्वार नामावली
चिइवंदण वंदणयं पडिकमणं पच्चखाणमुस्सग्गो। चउवीससमहियसयं गिहिपडिक्कमाइयाराणं ॥२॥ भरहमि भूयसंपइभविस्सतित्थंकराण नामाइं। एरवयंमिवि ताई जिणाण संपइभविस्साणं ॥३॥ उसहाइजिणिंदाणं आइमगणहरपवित्तिणीनामा। . अरिहंतऽज्जणठाणा जिणजणणीजणयनामगई ॥४॥ उक्किट्ठजहन्नेहिं संखा विहरंततित्थनाहाणं । जम्मसमएऽवि संखा उक्किट्ठजहणिया तेसिं ॥५॥ जिणगणहर मुणी समणी, वेउव्विय वाइ अवहि केवलिणो। मणनाणि चउदसपुब्वि, सड्ड सड्ढीण संखा उ॥६॥ जिणजक्खा देवीओ तणुमाणं लंछणाणि वन्ना य। वयपरिवारो सव्वाउयं च सिवगमणपरिवारो ॥७॥ निव्वाणगमणठाणं जिणंतराइं च तित्थवुच्छेओ। दस चुलसी वा आसायणाउ तह पाडिहेराई ॥८॥ चउतीसाइसयाणं दोसा अट्ठारसारिहचउक्कं । निक्खमणे नाणंमि अ निव्वांणमि य जिणाणं तवो ॥९॥ भाविजिणेसरजीवा, संखा उड्डाहतिरियसिद्धाणं । तह एक्कसमयसिद्धाण, ते य पन्नरसभेएहिं ॥१० ॥
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