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________________ प्रवचन-सारोद्धार Doordination असार-संसार से मुक्त होने का पुरुषार्थ करते हैं। सफलता मिलने पर एक दिन अवश्य मोक्ष सुख के भागी बनते हैं। कहा है 'वस्तु के यथार्थस्वरूप का ज्ञान हो जाने से भव्य जीव इस संसार से विरक्त होकर मोक्षानुकूल प्रयोजन १. ग्रन्थ का २. श्रोता का - १. अनंतर २. परम्पर १. अनंतर २. परम्पर सत्त्वानुग्रह परमपदप्राप्ति परमपदप्राप्ति प्रवचनस पदार्थ का परिज्ञान क्रिया में संलग्न हो, शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं।' • सम्बन्ध-दो प्रकार का है (i) उपायोपेय-यह सम्बन्ध तार्किकों के लिये है। वचनरूप यह शास्त्र उपाय (साधन) है तथा इस शास्त्र के अर्थ का ‘परिज्ञान' होना या परम्परया 'मुक्ति पाना' उपेय (साध्य) है। (ii) गुरुपर्वक्रम-यह सम्बन्ध श्रद्धालुओं के लिये है। जैसे आँधी के द्वारा घनघोर बादल नष्ट हो जाते हैं, प्रखर प्रकाशवाला सूर्य उदित हो जाता है, वैसे शुभध्यान द्वारा घनघाती कर्मों का नाश हो जाने से सम्पूर्ण जीव-अजीव आदि पदार्थों का यथार्थ ज्ञान कराने वाला अप्रतिम केवलज्ञान रूपी सूर्य उदित हो जाने पर, धन-धान्यादि समृद्धि के द्वारा अमरपुरी को भी शरमाने वाली अपापानगरी में भव्यजनों के नेत्रों को अपार आनंद देने वाले, अनपम प्राकारों से सशोभित समवसरण के मध्यभाग में स्थित. अद्भुत विविधरत्नों से जड़ित देवरचित सिंहासन पर बिराजमान, अप्रतिम अष्ट-महाप्रातिहार्यरूप अर्हत्संपदा से विभूषित परमात्मा महावीरदेव ने सुर-असुर-किन्नर-राजादि की सभा में प्रवचन के सारभूत समस्त पदार्थों को अर्थरूप से फरमाया था। उसी अर्थ को संघ के अधिपति श्री सुधर्मास्वामी ने सूत्ररूप में गूंथा। कहा है कि अर्थ से द्वादशांगी का प्रतिपादन तीर्थंकर परमात्मा करते हैं और गणधर भगवंत उसकी सूत्ररूप में रचना करते हैं। तत्पश्चात् जंबूस्वामी, प्रभवसूरि, शय्यंभवसूरि, यशोभद्रसूरि, संभूतिविजय, भद्रबाहुस्वामी, आर्य महागिरि, सुहस्तिसूरि, वाचकवर्य उमास्वाति, श्यामाचार्य आदि सूरिपुंगवों ने स्वरचित ग्रन्थों में पदार्थों का बड़े विस्तार से प्रतिपादन किया। वही परम्परा आज तक चली आ रही है। उन्हीं सूत्रों में से सारभूत पदार्थों को ग्रहण कर मंदबुद्धि आत्माओं के बोध के लिये मैंने इस प्रकरण की रचना की है। 'परोपकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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