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________________ प्रवचन - सारोद्धार ४३९ २. वातिक—– स्वभावतः या किसी निमित्त से जिसका पुरुष चिह्न इस प्रकार स्तब्ध हो जाता हो कि स्त्री संभोग के बिना पुनः सहज न हो सके । ३. क्लीब-असमर्थ .... अशक्त। इसके चार भेद हैं (i) दृष्टिक्लीब- निर्वस्त्र स्त्री पुरुष को देखकर क्षुब्ध होने वाला । (ii) शब्दक्लीब-- स्त्री का शब्द सुनकर क्षुब्ध होने वाला । (iii) आश्लिष्टक्लीब- स्त्री द्वारा बलात् आलिंगन करने पर व्रत पालन में असमर्थ । (iv) निमन्त्रणक्लब - स्त्री द्वारा प्रार्थना करने पर शिथिल होने वाला । ४. कुम्भी— मोह की उत्कटता से जिसका पुरुषचिह्न कुंभ की तरह 'उच्छून' हो । ५. ईर्ष्यालु – दूसरों को स्त्री संभोग करते हुए देखकर ईर्ष्या करने वाला । ६. शकुनि - पक्षियों की तरह बार-बार मैथुन सेवन करने वाला । ७. तत्कर्मसेवा — संभोग करते हुए वीर्य पात होने के पश्चात् श्वान की तरह प्रसन्नता से पुरुषचिह्न को चाटने वाला । ८. पाक्षिक- अपाक्षिक— शुक्लपक्ष में अधिक कामोत्तेजना वाला व कृष्णपक्ष में अल्प कामोत्तेजना " वाला ।। ७९३ ॥ ९. सौगन्धिक- पुरुषचिह्न को सुगन्धित मानकर सूंघने वाला । १०. आसक्त वीर्यपात के पश्चात् भी संभोग करने वाला । स्त्री का आलिंगन करके उसके अंगों के साथ कुचेष्टा करने वाला । पूर्वोक्त १० नपुंसक नगर के महादाह के समान तीव्र कामदाह वाले तथा संक्लिष्टचित्त वाले होने से दीक्षा के लिये अयोग्य हैं । प्रश्न- दीक्षा के लिये अयोग्य पुरुष के अठारह भेदों में कुछ नपुंसक भी हैं तो पूर्वोक्त भेदों में और प्रस्तुत भेदों में क्या अन्तर है ? उत्तर - पुरुष के भेद में बताये गये नपुंसक मात्र चेष्टा से नपुंसक हैं लिंग से नहीं, किन्तु प्रस्तुत भेद लिंग नपुंसकों के हैं। निशीथ चूर्णि में कहा है कि “इयाणि नपुंसया दस, ते पुरिसेसु चेव वृत्ता नपुंसदारे । जइ जे पुरिसेसु वुत्ता, ते चेव इहंपि किंकओ भेदो ? भन्नइ, “ तहिं पुरिसाकिई, इह गहणा सेसयाण भवेत्ति । " प्रश्न- आगम में नपुंसक के सोलह प्रकार हैं तो यहाँ दस प्रकार ही क्यों बताये ? उत्तर - यद्यपि नपुंसक के सोलह भेद हैं तथापि दीक्षा के लिये अयोग्य दस ही हैं । अतः यहाँ दस भेद ही बताये । शेष छः भेद दीक्षा के योग्य हैं । ७९४ ॥ दीक्षा के योग्य नपुंसक १. वर्द्धितक— अन्तःपुर की रक्षा के लिये जिनका पुरुषचिह्न बचपन में ही छेदकर या गलाकर जिन्हें नपुंसक बना दिया हो । २. चिपित्त- जन्म से ही जिनका पुरुष- चिह्न मर्दन कर गला दिया हो । ३-४. मंत्र औषधि उपहत —— मंत्र या औषधि के प्रभाव से स्त्रीवेद या पुरुषवेद नष्ट हो जाने के कारण जो नपुंसक बन गये हों । ५. ऋषिशाप - ऋषि आदि के शाप से जो नपुंसक बने हों । ६. देवशाप - देव के शाप से जो नपुंसक बने हों । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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