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________________ द्वार १०८-१०९ ४३८ -विवेचन दीक्षा-अयोग्य नारी के पूर्वोक्त अठारह भेद + दो भेद = २० भेद हैं। (i) गर्भिणी = सगर्भा (ii) सबालवत्सा–जिसका बच्चा स्तनपान करने वाला हो। इस प्रकार १८ + २ = २० भेद दीक्षा-अयोग्य नारी के हैं ॥ ७९२ ।। १०९ द्वार: दीक्षा-अयोग्य नपुंसक पंडए वाइए कीवे, कुंभी ईसालुगत्ति य। सउणी तक्कमसेवी य, पक्खियापक्खिए इय ॥७९३ ॥ सोगंधिए य आसत्ते, दस एते नपुंसगा। संकिलिसित्ति साहूणं पव्वावेउं अकप्पिया ॥७९४ ॥ -गाथार्थदीक्षा के अयोग्य नपुंसक-पंडक, वातिक, क्लीब, कुंभी, ईर्ष्यालु, शकुनि, तत्कर्मसेवी, पाक्षिक अपाक्षिक, सौगंधिक, आसक्त-ये दस नपुंसक अतिसंक्लिष्ट चित्तवाले होने से दीक्षा के अयोग्य हैं ।।७९३-७९४॥ -विवेचन १. पण्डक नपुंसक विशेष है। इसके छः प्रकार हैं। (i) महिला-स्वभाव-आकृति से पुरुष होते हुए भी नारी की तरह चेष्टा करने वाला, जैसे भयभीत की तरह चलना, मन्द-गति से चलना, पीछे देखते हुए चलना, स्त्री की तरह कोमल व ठण्डा शरीर होना, _ की तरह बात-बात में ताली देते हुए पेट पर तिरछे रखे हुए बांये हाथ की हथेली पर दांये हाथ के कोहनी को रखकर, दांयी हथेली पर मुँह को टिकाकर भुजाओं को हिलाते हुए बात करना। कमर प. Tथ रखना, स्त्री की तरह भुजा से छाती को ढकना, बात-बात में आँख भौएं चढ़ाना, केश बाँधना, वर भूषण पहनना, गुप्त-रीति से स्नान करना, पुरुषों के बीच आशंकित और स्त्रियों के बीच निर्भय रहना, स्त्री की तरह पकाना, खांडना, पीसना आदि घरेलू काम करना। (ii) (iii) स्वर, वर्ण भेद–जिसका शब्द, शारीरिक वर्ण, गन्ध और रस स्त्री व पुरुष के शब्दादि व अपेक्षा विलक्षण हो। __ (iv) मेहन-जिसका पुरुष चिह्न स्थूल हो। (v) मृदुवाणी-जिसका स्वर स्त्री की तरह कोमल हो। (vi) मूत्र--जिसका पेशाब शब्द युक्तः एवं झाग रहित हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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