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प्रवचन-सारोद्धार
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४. पुरुषक्लीब-स्त्री द्वारा भोग की याचना करने पर, स्त्री के अंगोपांग देखकर, कामोद्दीपक वचन सुनकर जो अपने आपको संयम में न रख सके, उसे दीक्षा नहीं देनी चाहिये।
दोष-१. तीव्र वेदोदय के वश कदाचित् स्त्री का आलिंगन करे । यह धर्म निन्दा का कारण होने से ऐसे को दीक्षा नहीं देनी चाहिये।
५. जड्ड-मूक। इसके तीन प्रकार हैं-१. भाषाजड्ड २. शरीरजड्ड और ३. कारणजडु १. भाषाजड-यह भी तीन प्रकार का है
(i) जलमूक-जल में डूबता हुआ व्यक्ति जिस प्रकार बुड़-बुड़ शब्द बोलता है, वैसे बुड़-बुड़ करते हुए बोलने वाला। ___ (ii) मन्मनमूक-हकलाते हुए बोलने वाला।
(iii) एलकमूक-भेड़ की तरह दूसरों को समझ न पड़े, इस प्रकार अस्पष्ट बोलने वाला। पूर्वोक्त तीनों प्रकार के भाषाजड्ड ज्ञान-ग्रहण करने में असमर्थ होने से दीक्षा के अयोग्य हैं।
२. शरीरजड्ड-अति-स्थूल शरीर वाला भी दीक्षा के अयोग्य है। • दोष-अति-स्थूल होने से गौचरी नहीं जा सकता, विनय आदि नहीं कर सकता। अधिक पसीना आने से शरीर, वस्त्र आदि में फूलन अधिक जमती है, जिन्हें धोने से जीव-विराधना, संयम-विराधना होती है तथा 'यह साधु बहु-भक्षी है, तभी तो इतना स्थूल है, अन्यथा साधु जीवन में स्थूलता का प्रश्न ही क्या है? इस प्रकार जन निन्दा होती है। अति-स्थूल होने से चलते समय श्वांस फूलता है, अति-स्थूल होने से सर्प, अग्नि आदि के भय की स्थिति में वह दौड़ नहीं सकता।
३. करणजड्ड–करण = क्रिया । जड = अज्ञ । समिति-गुप्ति, प्रतिक्रमण, पडिलेहण आदि संयम क्रियाओं को बार-बार समझाने पर भी नहीं समझने वाला।
दोष क्रियाओं का यथावत् ज्ञान न होने से उन्हें सम्यग् रीति से नहीं कर सकता है। इससे संयम-विराधना होती है।
७. व्याधि ग्रस्त-भगन्दर, अतिसार, कुष्ठ कफ, खाँसी और ज्वरादि से ग्रस्त रोगी व्यक्ति को दीक्षा नहीं देनी चाहिये। दोष– (i) चिकित्सा कराने में छ: काय जीवों की विराधना होती है।
(ii) स्वाध्याय की हानि होती है। ७. स्तेन-मकान में खात डालना, रास्ते में लूटना, डाका डालना आदि चोर-कर्म करने वाले व्यक्ति को दीक्षा नहीं देनी चाहिये।
दोष-ऐसा व्यक्ति गच्छ के लिये वध, बंधन, ताड़ना, तर्जना आदि अनर्थ का कारण होने से दीक्षा के अयोग्य है।
८. राजापकारी-राजद्रोही को दीक्षा नहीं देनी चाहिये। दोष—उसे दीक्षा देने से राजा क्रुद्ध होकर मुनि को मृत्यु-दण्ड, देश-निकाला आदि दे सकता है।
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