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द्वार १०७
प्रश्न-वज्रस्वामी को तीन वर्ष की उम्र में दीक्षा कैसे दी?
उत्तर-तीन वर्ष की उम्र में व्रजस्वामी का दीक्षा ग्रहण करना अपवाद रूप है। अपवादिक घटनायें सर्वत्र उदाहरण नहीं बन सकती। वज्रस्वामी छ: महीने के थे, तब से सावध के त्यागी थे। तीन वर्ष की उम्र में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी। यह महान् आश्चर्य है। पच्चवस्तुक ग्रन्थ में कहा है
तदधो परिहवखेत्तं न चरणभावोऽवि पायमेएसिं।
__ आहच्चभावकहगं सुत्तं पुण होई नायव्वं ॥ आठ वर्ष से कम उम्र के बालक को दीक्षा देना पराभव का कारण है। इतनी छोटी उम्र में चारित्र का भाव प्राय: नहीं हो सकता। वज्रस्वामी के लिये सूत्र में जो कहा है—'छम्मासियं छसु जयं माऊए समन्निअं वंदे' छ: महीने की उम्र से ही जो छ: जीवनिकाय की यतना करने वाले थे ऐसे वज्रस्वामी व उनकी माता को मैं वंदन करता हूँ। यह कथन अपवाद रूप है। अत: आठ वर्ष से पूर्व बालक को दीक्षा नहीं देना चाहिये। दोष- बालक होने से पराभव की सम्भावना रहती है।
बालसुलभ चेष्टाओं से संयमविराधना होती है। ज्ञान के अभाव में चारित्र की भावना नहीं होती। “ये मुनि लोग कितने कठोर हैं कि ऐसे दुधमुंहे बच्चों को दीक्षा देते हैं। इस प्रकार जन निन्दा होती है। बालमुनि की मातृवत् परिचर्या करने से स्वाध्याय में हानि होती है।
२. वृद्ध-जिस समय जितनी उत्कृष्ट आयु हो, उसके दसभाग करना। उनमें से आठवें, नौवें और दसवें भाग में वर्तमान “वद्ध" कहलाता है। जैसे वर्तमान में उत्कष्ट आय सौ वा की मानी गई है। उसके दस भाग करने पर आठवाँ, नौवाँ और दसवाँ भाग क्रमश: ८०-९० और १०० का होता है। अत: ७० वर्ष से ऊपर का वृद्ध होता है। उसे दीक्षा नहीं देनी चाहिये। यदि ७० वर्ष से पहले ही शरीर क्षीण हो गया हो तो उसे दीक्षा नहीं देनी चाहिये क्योंकि उसे सम्भालना कठिन होता है। दोष- १. उम्र में बड़ा होने से ऊपर बैठे।
२. विनय न करे। ३. गर्व धारण करे । इत्यादि कारणों से वृद्ध को दीक्षा नहीं देनी चाहिये । चाहे वह वासुदेव ___ का ही पुत्र क्यों न हो।
३. नपुंसक बहुत से दोषों की सम्भावना के कारण नपुंसक को दीक्षा नहीं देनी चाहिये । _ 'बाले, वुड्ढ़े य थेरे य' कहीं ऐसा भी पाठ है। इसका अर्थ है कि बाल, वृद्ध की तरह स्थविर भी दीक्षा के अयोग्य हैं। पर ऐसा पाठ निशीथ आदि आगमों में न होने से यहाँ भी उसकी उपेक्षा की गई है।
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