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प्रवचन - सारोद्धार
छायाऽसइ उण्हंमिवि वोसिरिय मुहुत्तयं चिट्ठे ॥७८८ ॥ उवगरणं वामगजाणुगंमि मत्तो य दाहिणे हत्थे । तत्थऽन्नत्थ व पुंछे तिआयमणं अदूरंमि ॥७८९ ॥ -गाथार्थ
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पारिष्ठापनिक और उच्चारकरण -- १. पश्चिम-दक्षिण, २. दक्षिण, ३. पश्चिम, ४. दक्षिण - पूर्व, ५. पश्चिम-उत्तर, ६. पूर्व, ७. उत्तर और ८. पूर्वोत्तर ये आठ दिशायें हैं ॥ ७८३ ।।
प्रथम दिशा में परठे तो विपुल मात्रा में आहार- पानी मिलते हैं । दूसरी दिशा में परठने पर आहार -पानी का अभाव होता है। तीसरी में परठे तो उपधि न मिले और चतुर्थ दिशा में परठने पर स्वाध्याय की हानि होती है ।। ७८४ ॥
पाँचवीं दिशा में परठे तो कलह होता है । छुट्टी में परठने से समुदाय में भेद पड़ता है। साव में परठने वाला रोगी बनता है तथा आठवीं दिशा में परठने वाले की निश्चित मृत्यु होती है ।।७८५ ॥ दिशा, पवन, गाँव और सूर्य को पीठ दिये बिना, तीन बार भूमि की प्रमार्जना करके, अवग्रह की याचना करके छाया में स्थंडिल जाकर आचमन करे ||७८६ ॥
उत्तरदिशा और पूर्व दिशा पूज्य होने से उसे पीठ देकर स्थंडिल नहीं जाना चाहिये । दक्षिण दिशा में राक्षसों का आवागमन होता है अतः रात्रि में दक्षिण दिशा की ओर पीठ नहीं करना चाहिये । जिस दिशा से हवा आती हो उस दिशा की ओर पीठ करने से नाक में मस्से होने की सम्भावना रहती है। सूर्य और गाँव की ओर पीठ देने से निन्दा होती है । ७८७ ।।
जिस मुनि के पेट में कृमि हो वह छाया में ही स्थंडिल बैठे । यदि छाया न हो तो धूप में . स्थंडिल जाकर एक मुहूर्त्त तक वहाँ खड़ा रहे ॥ ७८८ ॥
बांये घुटने पर उपकरण रखे। मात्रक दांयें हाथ में रखें । स्थंडिल के स्थान पर या अन्यत्र कंकर आदि से गुदा साफ करे, पश्चात् कुछ सरक कर जल से शुद्धि करे ।।७८९ ।।
-विवेचन
मृतक की प्रतिस्थापना — जिस गाँव में साधु मास कल्प या चातुर्मास रहे, वहाँ पहले से ही मृतक को परठने के लिये तीन महास्थंडिल देखकर रखे
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(i) आसन्न (समीपवर्ती), (ii) मध्य और (iii) दूर । (i) सामान्यत: मृतक को समीपवर्ती स्थंडिल में परठे ।
(ii) यदि समीपवर्ती स्थंडिल को किसी ने अनाज आदि बोने के उपयोग में ले लिया हो, पानी आदि भर गया हो अथवा वनस्पति पैदा हो गई हो तो उसके स्थान पर मृतक को परठने के लिये दूसरे स्थंडिल का प्रयोग करे ।
(iii) दूसरी स्थंडिल भूमि भी जीवाकुल बन गई हो तो तीसरे स्थंडिल का प्रयोग करे ।
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