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द्वार १०६
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मृतक के प्रतिस्थापन की दिशा और फलनैऋत्य दिशा में प्रतिस्थापन से
अन्न-पान-वस्त्रादि का लाभ होता है। इससे
समाधि मिलती है। दक्षिण दिशा में प्रतिस्थापन से
अन्न-पानी नहीं मिलता। पश्चिम में प्रतिस्थापन से
उपधि नहीं मिलती। आग्नेय कोण में प्रतिस्थापन से
स्वाध्याय में विघ्न आता है। वायव्य में प्रतिस्थापन से
साधुओं का गृहस्थ या कुतीर्थिकों के साथ
कलह होता है। पूर्व दिशा में प्रतिस्थापन से
गच्छ में मतभेद होता है। ७. उत्तर दिशा में प्रतिस्थापन से
साधु बीमार होते हैं। ८. ईशान कोण में प्रतिस्थापन से
अन्य साधु की मृत्यु होती है। पानी, चोर, अग्नि आदि के भय से पूर्व-पूर्व दिशाओं को छोड़कर उत्तर-उत्तर दिशाओं में परठे तो भी पूर्ववत् प्रचुर अन्न, पान, वस्त्रादि का लाभ होता है । निष्कारण परटे तो दोष होता है ॥७८३-७८५ ।। उच्चार (मलमूत्र के त्याग) के लिये जाने की विधि
मुनि एकाकी, मन्द गति से, विकथा रहित उच्चार के लिये जाये। मलोत्सर्ग के बाद गुदा को निर्लेप करने के लिये पाषाण खण्ड (डगला) रास्ते में ग्रहण करे । यदि उन पर कीड़ी आदि जन्तु हो तो उन्हें यतनापूर्वक अलग करे । तत्पश्चात् निर्दोष स्थंडिल में जाकर सर्वप्रथम ऊपर की ओर देखे कि वृक्ष या पर्वत आदि पर कोई चढ़ा तो नहीं है? फिर नीचे देखे कि खड्डे आदि में उतरा हुआ तो कोई नहीं है? फिर तिरछा देखे कि कोई इधर-उधर विश्राम तो नहीं कर रहा है? यदि कोई सागारी (गृहस्थ) . दिखायी न दे तो संडासा-प्रमार्जना पूर्वक बैठकर प्रेक्षित और प्रमार्जित क्षेत्र में मलोत्सर्ग करे । बैठने से पूर्व जिसका अवग्रह है उससे “अणुजाणह जस्सुग्गहो” कहकर अवग्रह की याचना अवश्य करे । गुदा यतनापूर्वक प्रक्षालित करे ।। ७८६ ॥
दिशा पूर्व और उत्तर दिशा लोकों में पूज्य मानी जाती है अत: उन्हें पीठ देकर कभी नहीं बैठना चाहिये। स्थंडिल जाते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। वाय गाँव व
त का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। वायु, गाँव व सूर्य की दिशा को भी पीठ देकर स्थंडिल नहीं बैठना चाहिये।
दोष-लोक-निन्दा व देवादि के कुपित हो जाने से मुनि की मृत्यु की सम्भावना रहती है अत: दिन में पूर्व व उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर पीठ नहीं करना चाहिये, कारण रात्रि में निशाचर-राक्षस दक्षिण उत्तर की ओर जाते हैं, कदाचित् कुद्ध होकर कुछ अनिष्ट कर दें। कहा है कि–'पेशाब और टट्टी दिन में उत्तराभिमुख व पूर्वाभिमुख तथा रात्रि में दक्षिणाभिमुख करना चाहिये, इससे आयु नहीं घटती। वायु की दिशा और गाँव की दिशा को पीठ देने से लोक-निन्दा होती है। वायु की दिशा को पीठ देने से मल की दुर्गन्ध सीधी नाक में जाती है। जिससे नाक में 'अर्स' आदि
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