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________________ प्रवचन - सारोद्धार (i) द्रव्यत पुष्ट आलम्बन-र - खड्डे आदि में गिरते हुये को जो आलंबन देकर बचाते हैं वे कठोर लता आदि । (ii) द्रव्यतः अपुष्ट आलम्बन-तृण, घास आदि । (iii) भावतः पुष्ट आलम्बन- राजा आदि को प्रतिबोधित करने के लिये, जिससे कि तीर्थ का विच्छेद न हो । दर्शन के प्रभावक ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिये, तपश्चर्या के लिये गच्छ को शिक्षित करने के हेतु से अथवा ज्ञान, दर्शन की वृद्धि करने वाले अन्य कारणों से एक स्थान में रहना, सालंबन वास है। शेष निष्कारण है। सालंबनवास करने वाला मुनि संसार रूपी खड्डे में गिरती हुई अपनी आत्मा को बचा लेता है । जिनाज्ञा का पालन करने से शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करता है । इसलिये जिनाज्ञानुसारी आलंबन ही ग्राह्य है, अन्य नहीं। कहा है- 'प्रमादी आत्मा के लिये संसार में आलंबन (बहानों) की कोई कमी नहीं है । ऐसा आत्मा जो जो सामने दिखाई देता है उसे ही आलम्बन बना लेता है ।' (iv) भावत: अपुष्टालंबन - स्वमतिकल्पित कारण से ।। ७७७-७७९ ॥ १०५ द्वार : जात-अजात कल्प ४२९ जाओ य अजाओ य दुविहो कप्पो य होइ नायव्वो । एक्केकोऽवि यदुविहो समत्तकप्पो य असमत्तो ॥ ७८० ॥ गीयत्थ जायकप्पो अगीयओ खलु भवे अजाओ य । पण समत्तकप्पो तदूणगो होइ असमत्तो ॥ ७८१ ॥ उउबद्धे वासासुं सत्त समत्तो तदूगो इयरो | असमत्ताजायाणं ओहेण न किंचि आहव्वं ॥७८२ ॥ -गाथार्थ जात - अजातकल्प-दो प्रकार का कल्प है- जातकल्प और अजातकल्प। इन दोनों के भी समाप्तकल्प और असमाप्तकल्प ये दो-दो भेद होते हैं ।।७८० ॥ गीतार्थ का विहार जातकल्प एवं अगीतार्थ का विहार अजातकल्प है। ऋतुबद्ध काल में पाँच साधुओं का समुदाय समाप्तंकल्प कहलाता है और इससे न्यून मुनि समुदाय असमाप्तकल्प कहलाता है । वर्षाकाल में सात साधुओं का समुदाय समाप्तकल्प तथा इससे न्यून समुदाय असमाप्तकल्प है । असमाप्तकल्पी तथा अजातकल्पी के अधिकार में कोई भी वस्तु नहीं होती ।।७८१-७८२ ।। -विवेचन कल्प = साधु का आचार। यह दो प्रकार का है (i) जात और (ii) अजात । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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