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________________ ४१२ द्वार ९७-९८ शम्बूका-शंख के आवर्त की तरह भिक्षा के लिये भ्रमण करना शंबूकावीथि है। इसके दो भेद (vii) आभ्यन्तरशंबूका-शंख के आवर्त की तरह क्षेत्र के मध्यभाग से भिक्षा ग्रहण करते-करते बाहर की ओर आना। (viii) बहिर्शबूका-गाँव के बाहर से गोलाकार में भिक्षा ग्रहण करते-करते भीतर की ओर जाना। पंचाशकवृत्ति के अनुसार शंबूकाकार भिक्षा पद्धति दो तरह की है-(i) दांए से बाएं गोलाकार में गमन करना, (ii) बांए से दाएं गोलाकार में गमन करना। अन्यग्रन्थों में पहली, दूसरी तथा दोनों तरह की शंबूका वीथी एक मानी जाती है अत: भिक्षा वीथी आठ की जगह छ: ही होती है ॥७४९ ।। - गोमूत्रिका - गत्वा प्रत्यागति उपा ऋजुगति पंतगवीथि बाह्य शम्बूका पेटा - 1 NAAD S अभ्यन्तर शम्बूका अर्ध पेटा ९८ द्वारः | प्रायश्चित्त आलोयण पडिक्कमणे मीस विवेगे तहा विउस्सग्गे। तव च्छेय मूल अणवट्ठिया य पारंचिए चेव ॥७५० ॥ आलोइज्जइ गुरुणो पुरओ कज्जेण हत्थसयगमणं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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