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प्रवचन - सारोद्धार
४. अनियतक्रम से भिक्षाग्रहण करना 'पतंगवीथी' भिक्षा है ।। ७४७ ।।
५. पेटी की तरह गाँव की चौकोर कल्पना करके, मध्य में रहे हुए घरों को छोड़कर चारों दिशा में स्थित घरों में समश्रेणि से भिक्षा ग्रहण करना 'पेटा' भिक्षावीथी है ।
६. चौकोर कल्पित गाँव की दो दिशा में स्थित गृहपंक्ति से भिक्षाग्रहण करना 'अर्धपेटा' भिक्षावीथी है ।।७४८ ॥
७. शंख के आवर्तों की तरह भिक्षा के लिये भ्रमण करना 'शंबूकावीथी' भिक्षा है । इसके दो भेद हैं- आभ्यंतरशंबूका और बाह्यशंबूका ।
गाँव के मध्यभाग से शंख के आवर्त की तरह भिक्षा ग्रहण करते-करते बाहर निकलना आभ्यंतर शंबूका भिक्षावीथी है।
८. आभ्यंतरशंबूका से विपरीत भिक्षावीथी बाह्यशंबूका है | ७४९ ।।
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-विवेचन
भिक्षामार्ग = भिक्षा - गमन की पद्धति। इसके आठ प्रकार हैं ।
(i) ऋजुगमन – उपाश्रय से निकलकर एक पंक्ति में रहे हुए सभी घरों में क्रमश: गौचरी के लिये जाना। आते समय सीधा आना ।
(ii) गत्वाप्रत्यागति — उपाश्रय से निकलकर जाते समय एक ओर की पंक्ति से और आते समय दूसरी ओर की पंक्ति से आहार ग्रहण करना ।
अन्यमतानुसार — ऋजुगमन से विपरीत 'गत्वा प्रत्यागति' होती है । अर्थात् जाते समय सीधे अन्तिम घर से भिक्षा ग्रहण करना और लौटते समय शेष घरों से क्रमशः भिक्षा लेना ||७४६ ॥
(iii) गोमूत्रिका — बैल का पेशाब जिस प्रकार टेड़ामेड़ा गिरता है - वैसे आमने सामने रहे हुए घरों में से एकबार इधर से और दूसरी बार उधर से भिक्षा लेना ।
जैसे
(iv) पतंगवीथि– पतंगा जिस प्रकार फूलों पर टेड़ामेड़ा उड़ता है वैसे अनियतक्रम से भिक्षा लेना ॥ ७४७ ॥
(v) पेटा - मंजूषा । जैसे मंजूषा चौकोर होती है वैसे ग्रामादि की कल्पना करना । पश्चात् मध्य भाग में रहे हुए घरों को छोड़कर चारों दिशा में रहे हुए घरों से क्रमशः भिक्षा ग्रहण करना ।
(vi) अर्धपेटा — गाँव की मंजूषा की तरह (चौकोर) कल्पना करके केवल दो दिशा में (अर्धपेटाकार में) रहे हुए घरों से ही क्रमशः भिक्षा ग्रहण करना। मंजूषा के आधे भाग की तरह ||७४८ ॥
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