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द्वार ९६-९७
४१०
चौथी 'अल्पलेपिका' को छोड़कर शेष सभी एषणाओं में संसृष्ट हस्त, पात्र, सावशेष निरवशेष देय-पात्र के आठ भांगे होते हैं। चौथी अलेप होने से उसमें भांगों की सम्भावना नहीं होती ।। ७४३ ॥ पानैषणा के भी पूर्वोक्त सात प्रकार हैं।
विशेष-चौथी अल्पलेपिका पानैषणा में कुछ भेद हैं। कांजी, ओसामण, गर्म पानी या चावलों का धोवन ग्रहण करने में अल्पलेपिका पानैषणा होती है, किन्तु गन्ने का रस, द्राक्षापानक, इमली का पानी आदि ग्रहण करने में नहीं होती क्योंकि ये लेपकारी है। इनका उपयोग आत्मा को कर्म से लिप्त करता है ॥७४४॥
९७ द्वार:
भिक्षाचर्या-विधि
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उज्जु गंतुं पच्चागइया गोमुत्तिया पयंगविही । पेडा य अद्धपेडा अभितर बाहिसंबुक्का ॥७४५ ॥ ठाणा उज्जुगईए भिक्खंतो जाइ वलइ अनडतो। पढमाए बीयाए पविसिय निस्सरइ भिक्खंतो ॥७४६ ॥ वामाओ दाहिणगिहे भिक्खिज्जइ दाहिणाओ वामंमि । जीए सा गोमुत्ती अड्डवियड्डा पयंगविही ॥७४७ ॥ चउदिसि सेणीभमणे मज्झे मुक्कमि भन्नए पेडा। दिसिदुगसंबद्धस्सेणिभिक्खणे अद्धपेडत्ति ॥७४८ ॥ अभिंतरसंबुक्का जीए भमिरो बहिं विणिस्सरइ। बहिसंबुक्का भन्नइ एयं विवरीयभिक्खाए ॥७४९ ॥
-गाथार्थभिक्षाचर्या की वीथी—१. ऋजु, २. गत्वाप्रत्यागति, ३. गोमूत्रिका, ४. पतंगवीथी, ५. पेटा, ६. अर्धपेटा, ७. आभ्यन्तर शंबुका तथा ८. बाह्यशंबुका-ये भिक्षाचर्या के आठ मार्ग हैं। ७४५ ॥
१. उपाश्रय से निकलकर सीधे चलते हुए रास्ते की किसी एक पंक्ति के प्रथम घर से यावत् अन्तिम घर तक भिक्षा लेकर पश्चात् सीधे उपाश्रय में लौट आना 'ऋजुगति' भिक्षावीथी है।
२. जाते समय एक पंक्ति के घरों से भिक्षा लेकर आते समय द्वितीय पंक्ति के घरों से भिक्षा लेते हुए आना 'गत्वाप्रत्यागति' भिक्षावीथी है ।।७४६ ।।
३. दाँयी पंक्ति से बांयी पंक्ति के घर में और बांयी पंक्ति से दांयी पंक्ति के घर में इस प्रकार आमने-सामने से भिक्षाग्रहण करना 'गोमूत्रिका भिक्षावीथी है।
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