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________________ ४०८ द्वार ९६ 16504230003305544606580441055AMAMAAR665 तंमि य संसट्ठा हत्थमत्तएहिं इमा पढम भिक्खा। तव्विवरीया बीया भिक्खा गिण्हंतयस्स भवे ॥७४० ॥ नियजोएणं भोयणजायं उद्धरियमुद्धडा भिक्खा। सा अप्पलेविया जा निल्लेवा वल्लचणगाई ॥७४१ ॥ भोयणकाले निहिया सरावपमुहेसु होई उग्गहिया। पग्गहिया जं दाउं भुत्तुं व करेण असणाई ॥७४२ ॥ भोयणजायं जं छड्डणारिहं नेहयंति दुपयाई। अद्धच्चत्तं वा सा उज्झियधम्मा भवे भिक्खा ॥७४३ ॥ पाणेसणावि एवं नवरि चउत्थीए होइ नाणत्तं । सोवीरायामाइं जमले वाडत्ति समयुत्ती ॥७४४ ॥ -गाथार्थआहार और पानी की सात एषणायें—१. संसृष्टा, २. असंसृष्टा, ३. उद्धृता, ४. अल्पलेपिका, ५. अवगृहीता, ६. प्रगृहीता एवं ७. उज्झितधर्मा-ये सात ग्रहणैषणा हैं ।।७३९ ॥ १. हस्त और पात्र के द्वारा प्रथम संसृष्टा भिक्षा होती है। २. प्रथम भिक्षा से विपरीत द्वितीय भिक्षा होती है ।।७४० ॥ ३. जिस बर्तन में भोजन बनाया है उस बर्तन से अन्य बर्तन में भोजन निकाल कर भिक्षा देना, उद्धृता भिक्षा है। ४. चने आदि अलेपकृत पदार्थों की भिक्षा अल्पलेपा है ।।७४१ ।। ५. भोजन के समय गृहस्थ के स्वयं के लिये शराव आदि में निकाली हुई भिक्षा अवगृहीता है। ६. खाने के लिये हाथ में गृहीत भिक्षा आदि प्रगृहीता भिक्षा है ।।७४२ ।। ७. जिसे कोई द्विपद खाना न चाहे ऐसी भिक्षा अथवा जिस भोजन का आधा भाग फेंक दिया हा ऐसा भोजन उज्झितधर्मा भिक्षा है ।।७४३ ॥ पानेषणा का विवरण भी इसी तरह समझना चाहिये। किन्तु चतुर्थ पानैषणा कुछ भिन्न है। यथा आगम में कांजी, मांड आदि को अलेपकृत बताया है ।।७४४ ॥ -विवेचन पिण्ड = आहार, एषणा = ग्रहण करने का तरीका। इस प्रकार पानैषणा का समझना। दोनों एषणा के सात प्रकार हैं। • गच्छवासी मुनि एषणा के सातों प्रकार से आहार-पानी ग्रहण करते हैं। • गच्छ निर्गत मुनि एषणा के पहले दो प्रकारों को छोड़कर, अन्तिम पाँच प्रकार से आहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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