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द्वार ९५
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राएणाऽऽसायंतो संगारं करइ सचरित्तं ॥७३५ ॥ भुंजतो अमणुन्नं दोसेण सधूमगं कुणइ चरणं । वेयणआयंकप्पमुहकारणा छच्च पत्तेयं ॥७३६ ॥ वेयण वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए ॥७३७ ॥ आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंभचेरगुत्तीसु । पाणिदया तवहेऊ सरीरवोच्छेयणट्ठाए ॥७३८ ॥
-गाथार्थग्रासैषणा-पंचक-१. संयोजना, २. प्रमाण, ३. अंगार, ४. धूम्र तथा ५ कारण-ये ग्रासैषणा के पाँच दोष हैं। इनमें प्रथम दोष संयोजना, उपकरणविषयक और भक्तपान विषयक दो प्रकार की है। इन दोनों के भी बाह्य और आभ्यंतर ऐसे दो भेद हैं।७३४ ॥
मुर्गी के अण्डे जितने परिमाण वाले ३२ कवल भोजन का वास्तविक प्रमाण है। आहार को रागपूर्वक खाने वाला मुनि अपने संयम का अंगारा-कोयला कर देता है ।।७३५ ॥
अमनोज्ञ भोजन द्वेषपूर्वक करने वाला मुनि अपने संयम को सधूम करता है। भोजन करने और न करने के क्रमश: वेदनादि छ: और आतंक आदि छ: कारण हैं ।।७३६ ।।
१. वेदना, २. वैयावृत्त्य, ३. ईर्यासमिति का पालन ४. संयम, ५. प्राणधारण एवं ६. धर्मचिन्तन-ये भोजन करने के छ: कारण हैं ।।७३७ ॥
१. रोग, २. उपसर्ग, ३. ब्रह्मचर्य का पालन, ४. जीवदया, ५. तप एवं ६. शरीर त्याग-इन छ: कारणों से भोजन का त्याग किया जाता है ।।७३८ ॥
-विवेचन ग्रास = भोजन, एषणा = भोजन सम्बन्धी शुद्धि-अशुद्धि विषयक पर्यालोचन । ग्रासैषणा के पाँच दोष हैं—१. संयोजना, २. प्रमाण, ३. अंगार, ४. धूम, ५. कारण।
१. संयोजना—किसी द्रव्य को अधिक शोभनीय व रसयुक्त बनाने के लिये अन्य द्रव्य से संयुक्त करना। इसके भी दो प्रकार हैं-(i) उपकरण विषयक, (ii) भक्तपानविषयक ।
(i) उपकरण विषयक संयोजना भी बाह्य आभ्यन्तर भेद से दो तरह की होती है। जैसे किसी के घर सुन्दर चोलपट्टा मिल गया तो उसी समय अन्य के घर से योग्य चादर माँगकर वसति के बाहर पहनना उपकरण विषयक बाह्य संयोजना है। विभूषा के लिये वसति के अन्दर पहनना आभ्यन्तर संयोजना
(ii) भक्त-पान विषयक संयोजना भी बाह्य आभ्यन्तर भेद से दो तरह की है। दूध आदि द्रव्य
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