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प्रवचन - सारोद्धार
निर्ग्रन्थों का काल-निर्ग्रन्थ, स्नातक और पुलाक सर्वदा नहीं होते । जम्बूस्वामी के पश्चात् इनका विच्छेद हो चुका है। बकुश और कुशील यावत्तीर्थ रहेंगे ॥ ७३० ॥
९४ द्वार :
निग्गंथ सक्क तास गेरुय आजीव पंचहा समणा । तम्मी निग्गंथा ते जे जिणसासणभवा मुणिणो ॥ ७३१ ॥ सक्का य सुगयसीसा जे जडिला ते उ तावसा गीया । जे धात्तवत्था तिदंडिणो गेरुया ते उ ॥७३२ ॥ जे गोसालगमयमणुसरंति भन्नंति ते उ आजीवा । समणत्तणेण भुवणे पंचवि पत्ता सिद्धिमिमे ॥ ७३३॥ -गाथार्थ
१. निर्ग्रन्थ- वीतराग शासन के अनुयायी सुसाधु ।
२. शाक्य – बौद्ध मतानुयायी साधु ।
श्रमण-पंचक
श्रमण पंचक - १. निर्ग्रन्थ, शाक्य, तापस, गैरुक एवं आजीवक-ये पाँच प्रकार के श्रमण हैं। इनमें जो निर्ग्रन्थ हैं वे जैन मुनि हैं । बुद्ध के शिष्य शाक्य हैं। जो जटाधारी हैं, वे तापस हैं । भगवा वेष पहनने वाले त्रिदंडी गैरुक हैं। गौशालक के मत का अनुसरण करने वाले साधु आजीवक कहलाते हैं। ये पाँचों जगत में श्रमणरूप से प्रसिद्धि को प्राप्त हैं ।।७३१-७३३ ।।
-विवेचन
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३. तापस—– जटाधारी, वनवासी एवं अन्य मतानुयायी साधु ।
४. गैरुक—– गैरुए वस्त्र पहनने वाले, त्रिदंडी, परिव्राजक ।
५. आजीवक–गौशालक के मतानुयायी । ये पाँचों श्रमणरूप से प्रसिद्ध हैं । ७३१-७३३ ।।
९५ द्वार :
ग्रासैषणा-पंचक
संजोयणा पमाणे इंगाले धूम कारणे चेव । उवगरणभत्तपाणे सबाहिरब्भंतरा पढमा ॥७३४॥ कुक्कुडिअंडयमेत्ता कवला बत्तीस भोयणपमाणे ।
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