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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३९५ १४. लोकबिन्दुसार - श्रुतलोक में अक्षरों के ऊपर लगने वाला १२५ अनुस्वार सर्वोत्तम होता है, वैसे 'सर्वाक्षर करोड़ पद सन्निपातलब्धि' का कारणभूत ‘लोकबिन्दुसार' पूर्व सर्वोत्तम है ॥ ७१७ ॥ • पूर्ण अर्थ की उपलब्धि कराने वाला शब्द समूह पद कहलाता है। पद का लक्षण इस प्रकार है परन्तु परम्परा के अभाव में इस लक्षण के अनुसार पद का प्रमाण वर्तमान में ज्ञात नहीं समवायांग की टीका में पद के परिमाण के विषय में कुछ भिन्नता दिखाई देती है। पूर्वशब्द का अर्थ तीर्थकर परमात्मा, तीर्थ की स्थापना करते समय गणधर भगवन्तों को सर्वप्रथम सभी सूत्रों का आधारभूत पूर्वगत अर्थ का ही उपदेश देते हैं। इसलिये इन्हें 'पूर्व' कहा जाता है। तत्पश्चात् गणधर भगवन्त उस अर्थ से आचारांग आदि सूत्रों की रचना करते हैं तथा क्रमश: उन्हें व्यवस्थित करते हैं। मतान्तरे--सर्वप्रथम तीर्थंकर परमात्मा ने पूर्वगत अर्थ का कथन किया। तत्पश्चात् गणधर भगवन्तों ने पूर्वो (सूत्ररूप पूर्व) के रूप में सूत्र रचना की। तत्पश्चात् आचारांग आदि की रचना की। प्रश्न-आचारांग नियुक्ति में सर्वप्रथम आचारांग की रचना करने का कथन है, यह कैसे संगत होगा? कहा है--सव्वेसिं आयारो (गा. ८)। उत्तर-आचारांग नियुक्ति का कथन सूत्रों की रचना से सम्बन्धित न होकर स्थापना से सम्बन्धित है अर्थात् सूत्रों के स्थापनाक्रम में गणधरों ने सर्वप्रथम स्थापना आचारांग की की, पर रचना क्रम में तो प्रथम पूर्व है। अंग नाम पद संख्याआचारांग १८ हजार पद सूत्रकृतांग ३६ हजार पद स्थानांग ७२ हजार पद समवायांग १४४ हजार पद भगवती २८८ हजार पद ज्ञाताधर्मकथा ५७६ हजार पद उपासकदशा ११ लाख ५२ हजार पद अन्तकृद्दशा २३ लाख ४ हजार पद अनुत्तरोपपातिक ४६ लाख ८ हजार पद १०. प्रश्न व्याकरण ९२ लाख १६ हजार पद ११. विपाकसूत्र १ करोड़ ८४ लाख ३२ हजार पद Mmx 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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