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________________ ३९४ द्वार ९२ पदवदवाकर ३. वीर्यप्रवाद ४. अस्तिनास्ति प्रवाद - इसमें सिद्ध-संसारी जीवों की तथा अजीवों ७० लाखपद की वीर्य-शक्ति का वर्णन है। - जगत में जिनका अस्तित्त्व है, एसे धर्मास्तिकाय ६० लाखपद आदि तथा जिनका अभाव है ऐसे गधे के सींग आदि अथवा स्याद्वाद की दृष्टि से सभी वस्तुयें स्वरूप से अस्तित्ववाली हैं और पररूप से अस्तित्व के अभाववाली हैं, इस प्रकार की चर्चा जिसमें है वह पूर्व ॥ ७१२ ।। - जिसमें पाँचों ज्ञान का भेद-प्रभेद सहित वर्णन १ पद न्यून करोड़पद - संयम अथवा सत्य का जिसमें सप्रभेद वर्णन १ करोड़ ६ पद है ॥ ७१३ ॥ - जिसमें अनेकविध नयों के द्वारा आत्मा का ३६ करोड़पद वर्णन किया गया है। ५. ज्ञानप्रवाद ६.सत्यप्रवाद ७. आत्मप्रवाद ८.समयप्रवाद ९. प्रत्याख्यानप्रवाद १०. विद्यानुप्रवाद --- कर्म के स्वरूप को बतानेवाला अर्थात् जिसमें १ करोड़ ८० ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों के बंध, उदय, उदीरणा, लाखपद सत्ता आदि का तथा मूलोत्तर भेदों का सस्वरूप वर्णन है ।। ७१४ ॥ - सप्रभेद प्रत्याख्यान के स्वरूप को बताने वाला ८४ लाखपद पूर्व विशेष । - साधन-सिद्धि सहित जिसमें अनेक विद्याओं १ करोड़ १५ का वर्णन है ।। ७१५ ॥ हजार पद - ज्ञान, तप आदि अनुष्ठानों के शुभफल का २६ करोड़पद तथा प्रमादादि अशुभ योगों के अशुभ फल का वर्णन करने वाला पूर्व । - जीवों के १० प्राण तथा अनेकविध आयु के १ करोड़ ५६ स्वरूप को बताने वाला पूर्व ॥ ७१६ ॥ लाख पद --- जिसमें कायिकी आदि क्रियाओं का सप्रभेद ९ करोड़ पद वर्णन है। ११. अवन्ध्यप्रवाद (कल्याण प्रवाद) १२. प्राणायुपूर्व १३. क्रियाविशाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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