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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३९३ TODance ९२ द्वार : | १४ पूर्व-(नाम-पद-संख्या) उप्पायं पढमं पुण एक्कारसकोडिपयपमाणेणं । बीयं अग्गाणीयं छन्नउई लक्खपयसंखं ॥७११ ॥ विरियप्पवायपुव्वं सत्तरिपयलक्खलक्खियं तइयं । अत्थियनत्थिपवायं सट्ठीलक्खा चउत्थं तु ॥७१२ ॥ नाणप्पवायनामं एवं एगूणकोडिपयसंखं। सच्चप्पवायपुव्वं छप्पयअहिएगकोडीए ॥७१३ ॥ आयप्पवायपुवं पयाण कोडी उ हुंति छत्तीसं । समयप्पवायगवरं असीई लक्ख पयकोडी ॥७१४ ॥ नवमं पच्चक्खाणं लक्खा चुलसी पयाण परिमाणं । विज्जप्पवाय पनरस सहस्स एक्कारस उ कोडी ॥७१५ ॥ छव्वीसं कोडीओ पयाण पुव्वे अवंझणामंमि। छप्पन्न लक्ख अहिया पयाण कोडी उ पाणाऊ ॥७१६ ॥ किरियाविसालपुव्वं नव कोडीओ पयाण तेरसमं । अद्धत्तेरसकोडी चउदसमे बिंदुसारम्मि ॥७१७ ॥ पढ़मं आयारंगं अट्ठारस पयसहस्सपरिमाणं । एवं सेसंगाण वि दुगुणादुगुणप्पमाणाइं ॥७१८ ॥ -विवेचन - यह प्रथमपूर्व है। इसमें सभी द्रव्य और पर्यायों के उत्पाद का स्वरूप बताया गया है। जिससे सभी द्रव्य-पर्याय तथा जीव विशेष के परिमाण का ज्ञान होता है वह आग्रायणीपूर्व । अग्र = परिमाण, अयनं = ज्ञान, जिससे हो ॥ ७११॥ १. उत्पादपूर्व ११ करोड़पद २. आग्रायणी पूर्व ९६ लाखपद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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