________________
३८६
द्वार ९१
५. परपक्ष सम्बन्धी आपात वाले स्थंडिल में यदि पुरुष के आपात वाला स्थंडिल है तो मुनि को स्वच्छ व प्रचुर जल लेकर जाना चाहिये । अति अल्प जल, अस्वच्छ जल सहित या सर्वथा जल रहित मुनि को देखकर 'ये अपवित्र है' लोग ऐसी निन्दा करे, ऐसे अपवित्र लोगों को आहार-पानी नहीं देना चाहिये इस प्रकार भिक्षा का निषेध करे । नवागन्तुक श्रावक को साधु के प्रति अरुचि हो जाये।
६. स्त्री व नपुंसक के आपात वाले स्थंडिल में जाने से साधु, गृहस्थ या दोनों के विषय में सन्देह पैदा हो सकता है। साधु के विषय में सन्देह जैसे लगता है-यह साधु किसी स्त्री को भ्रमित करना चाहता है। स्त्री व नपुंसक के विषय में सन्देह करना, यथा—ये दुरात्मा साधु से दुराचरण करना चाहते हैं। साधु व गृहस्थ दोनों के विषय में सन्देह करना कि-ये दोनों ही यहाँ दुराचार के लिये आये हैं।
७. स्त्री व नपुंसक के आपात वाले स्थंडिल में जाने से परस्पर एक-दूसरे को देखकर वेदोदय होने से मैथुन सेवन की सम्भावना रहती है। उन्हें मैथुन सेवन करते देखकर कोई मनुष्य राजादि से कहकर उन्हें दण्डित करावे, इससे शासन की भारी अवहेलना हो।
८. हिंसक पशुओं के आपात वाले स्थंडिल में भी मुनि को नहीं जाना चाहिये। ऐसे स्थंडिल में जाने से कई दोष हैं। कदाचित् पशु सींग पिरो दे, मार दे आदि ।
९. निन्दनीय पश. स्त्री व नपंसक के आपात वाले स्थंडिल में भी मनि को नहीं जाना चाहिये। कारण वहाँ जाने से लोगों के मन में मुनि के प्रति दुराचार करने का सन्देह उत्पन्न होता है। कदाचित् आवेग प्रबल हो जाये तो मैथुन का सेवन भी कर ले।
पूर्वोक्त दोष आपातवत् स्थंडिल में जाने के हैं। इसी प्रकार मानवीय संलोकवत् स्थंडिल के भी समझना। तिर्यंच के संलोक वाले स्थंडिल में जाने में पूर्वोक्त एक भी दोष नहीं लगता।
यद्यपि मनुष्य के संलोक वाले स्थंडिल में जाने में कदाचित स्वपर व उभय प्रेरित मैथुन की सम्भावना न भी हो तथापि लोकापवाद का अवकाश अवश्य रहता है ।जैसे—कुछ लोग कह सकते हैं कि जिस दिशा में युवतियाँ जाती हैं उसी दिशा में ये मुनि लोग स्थंडिल के लिये जाते हैं। लगता है ये किसी स्त्री को चाहते हैं अथवा संकेत किया हुआ है अत: ये आये हैं तथा नपुंसक मनुष्य या नारी स्वभाववश अथवा वायु विकार के कारण विकृत लिंग को देखकर भोगेच्छा से साधु को उपद्रवित करे। इसलिये स्त्री, पुरुष व नपुंसक तीनों के संलोक में स्थंडिल जाना वर्ण्य है।
इस प्रकार अन्तिम (चौथे) भांगे में आपात व संलोक के दोष, तीसरे भांगे में आपात के दोष तथा दूसरे भांगे में संलोक के दोष होने से तीनों भांगों वाला स्थंडिल अशुद्ध है। मात्र प्रथम भांगा युक्त दोनों स्थंडिल (आपात व संलोक) के दोषों से रहित होने से शुद्ध हैं। अत: ऐसे स्थंडिल में साधु को गमन करना चाहिये। कहा है-स्थंडिल तीसरे भांगे में आपात से सम्बन्धित दोष है, दूसरे भांगे में संलोक से सम्बन्धित दोष है, किन्तु प्रथम भंग निर्दोष है अत: साधु को ऐसे स्थंडिल में ही गमन करना चाहिये।
२. अनौपघातिक–जहाँ जाने से निन्दा, उपहास तथा वध आदि की सम्भावना हो वह औपघातिक स्थंडिल है और इससे भिन्न अनौपघातिक है। औपघातिक के तीन भेद हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.