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________________ प्रवचन - सारोद्धार तिर्यंच के आपातवाला स्थंडिल १. तिर्यंच के दो भेद हैं— (i) दृप्त हिंसक पशु, (ii) अदृप्त पालतू पशु । दोनों प्रकार के पशु जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट तीन श्रेणि के हैं। पशुओं के जघन्य, मध्यमादि भेद मूल्य की अपेक्षा से हैं । जैसे- अल्प मूल्य वाले होने से बकरी, घेटा आदि जघन्य हैं । कुछ अधिक मूल्यवान होने से भैंस, गाय आदि मध्यम हैं तथा मूल्यवान होने से हाथी आदि उत्कृष्ट श्रेणी के पशु हैं। इसी तरह स्त्री, पशु व नपुंसक पशु का भी समझना । देखें चार्ट पृष्ठ संख्या ३९१ । = ३८५ - २. सभी पशु निन्दनीय व अनिन्दनीय के भेद से पुनः द्विविध हैं । गर्दभ आदि निन्दनीय (निम्न जाति के) हैं व घोड़ी आदि अनिन्दनीय ( उच्च जाति के ) हैं । कहा है कि — दृप्त- अदृप्त के भेद से तिर्यंच के दो भेद हैं । जघन्य- मध्यम व उत्कृष्ट के भेद से दृप्त अदृप्त भी त्रिविध हैं । इसी तरह स्त्री, पशु व नपुंसक पशु का भी समझना । पुनः वे निन्दनीय व अनिन्दनीय के भेद से द्विविध हैं। (बृहत्कल्प भाष्य ४२४, पंचवस्तुक ४१२, ओघनिर्युक्ति ३०२ ) संलोकवत् स्थंडिल = जहाँ जाता-आता दिखाई दे । यहाँ संलोक मनुष्य सम्बन्धी ही समझना । १. मनुष्य के तीन भेद हैं- (i) पुरुष, (ii) स्त्री, (iii) नपुंसक । तीनों के पुनः तीन-तीन भेद हैं— (i) सामान्यजन, (ii) सेठ साहूकार तथा (iii) राजपुरुष । इनमें से प्रत्येक के दो भेद हैं- शौचवादी व अशौचवादी । कहा है आलोक मनुष्य सम्बन्धी ही होता है । मनुष्य पुरुष, स्त्री व नपुंसक तीन प्रकार के हैं। इनमें से प्रत्येक सामान्य जन, सेठ साहूकार तथा राजपुरुष के भेद से त्रिविध हैं । ये त्रिविध भी शौचवादी व अशौचवादी के भेद से द्विविध हैं। देखें चार्ट पृष्ठ संख्या- ३९२ । Jain Education International चौथे भांगे में आपात व संलोक, तृतीय भांगे में आपात व द्वितीय भांगे में संलोक के भेद-प्रभेद का समावेश होता है । इन तीनों भांगों से युक्त स्थंडिल का उपयोग करने में निम्न दोष हैं: १. स्वपक्ष-संयत-संविज्ञ- अमनोज्ञ के आपात वाले स्थंडिल में साधु को उच्चार- प्रस्रवण आदि के लिये नहीं जाना चाहिये क्योंकि इसमें कलह आदि की सम्भावना रहती है । भिन्न-भिन्न आचार्यों की भिन्न-भिन्न समाचारी है। जहाँ अमनोज्ञ का जाना-आना है ऐसे स्थंडिल में यदि नवदीक्षित मुनि जावे और अमनोज्ञ मुनियों की विपरीत समाचारी देखकर स्वसमाचारी के रागवश कदाचित् उन्हें असत्य प्रमाणित करे तो परस्पर कलह की सम्भावना रहती है। I २. असंविज्ञ पार्श्वस्थ के आपात वाले स्थंडिल में तो मुनियों को कदापि नहीं जाना चाहिये क्योंकि वे मलशुद्धि हेतु प्रचुर जल का उपयोग करते हैं। उन्हें ऐसा करते देखकर शौचवादी नवदीक्षित मुनि के मन में ऐसा भाव आ सकता है कि ये भी साधु हैं, हम भी साधु हैं पर इनका जीवन अच्छा है अत: इन्हीं के पास रहना चाहिये, ऐसा सोचकर उनके पास चला जाये । ३. मनोज्ञ के आपात वाले स्थंडिल में जा सकते हैं। ४. संयती साध्वी के आपात वाले स्थंडिल में मुनि को कदापि जाना नहीं कल्पता । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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