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द्वार ९१
पूर्वोक्त चारों भागों में प्रथम भांगा शुद्ध होने से अनुज्ञात है। शेष तीनों ही भांगे निषिद्ध हैं। चौथे भांगे की व्याख्या करने से अन्य भांगों के गुणदोष सुगमता से ज्ञात हो जाते हैं अत: उसी भांगे की यहाँ व्याख्या की जाती है।
चतुर्थ भंग आपातवत् संलोकवत् स्थंडिल का है। आपातवत् का अर्थ है गमनागमन वाला तथा संलोकवत् का अर्थ है जहाँ दूर से जाता-आता दिखाई दे। १. आपातवत् स्थंडिल के दो भेद हैं-() स्वपक्ष = संयत वर्ग के आपातवाला।
(ii) परपक्ष = गृहस्थ वर्ग के आपातवाला। २. संयत के आपातवाला स्थंडिल भी दो प्रकार का है-(i) संयत = साधु के आपात वाला
(ii) संयती = साध्वी के आपातवाला। ३. संयत-संयती के आपातवाला स्थंडिल भी दो प्रकार का है-() संविज्ञ संयत-संयती के आपातवाला, (ii) असंविज्ञ संयत-संयती के आपातवाला। संविज्ञ = यथाविधि साधु समाचारी के पालक। असंविज्ञ = शिथिलाचारी, पार्श्वस्थ । ४. संविज्ञ भी दो प्रकार के हैं—() मनोज्ञ = समान समाचारी वाले।
(ii) अमनोज्ञ = भिन्न समाचारी वाले । ५. असंविज्ञ के भी दो भेद हैं-(i) संविज्ञ पाक्षिक = अपने दोषों की निन्दा करने वाले तथा विशुद्ध समाचारी के प्ररूपक। (ii) असंविज्ञ पाक्षिक = धर्महीन, सुसाधुओं की निन्दा करने वाले। कहा है
आपात के दो प्रकार हैं-स्वपक्ष सम्बन्धी व परपक्ष सम्बन्धी । स्वपक्ष के दो भेद हैं साधु व साध्वी । साधु-साध्वी भी दो प्रकार के हैं
संविज्ञ और असंविज्ञ । संविज्ञ के दो भेद हैं:-मनोज्ञ व अमनोज्ञ । असंविज्ञ के दो भेद हैं—संविज्ञ पाक्षिक व असंविज्ञपाक्षिक। देखें चार्ट पृष्ठ संख्या ३८९ ।
६. परपक्ष के आपातवाला स्थंडिल भी दो प्रकार का है मनुष्य के आपातवाला तथा तिर्यंच के आपातवाला। पूर्वोक्त दोनों ही स्थंडिल के तीन-तीन भेद हैं-(i) पुरुष के आपातवाला, (ii) नपुंसक के आपातवाला, (iii) स्त्री के आपातवाला।
७. पुरुष तीन प्रकार के हैं-(i) राजकुल से सम्बन्धित, (ii) सेठ साहूकार व (iii) सामान्यजन । इनके आपात से स्थंडिल के तीन भेद हैं।
८. पुन: (i) शौचवादी व (ii) अशौचवादी के भेद से तीनों प्रकार के पुरुष द्विविध हैं।
९. स्त्री व नपुंसक के भी पुरुष की तरह तीन-तीन भेद हैं। इनके आपात से स्थंडिल के भी तीन-तीन भेद हैं। शौचवादी व अशौचवादी के भेद से स्त्री व नपुंसक भी द्विविध हैं। देखें चार्ट पृष्ठ संख्या ३९० ।
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