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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३८३ मस5-350-33500 • नपुंसक वेद आदि तथा बादर लोभ के असंख्याता खंडों का अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में उपशमन करता है। अन्तिम सूक्ष्म किट्टीकृत खण्ड के असंख्यात खण्डों का सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में उपशमन करता है ।। ७००-७०८ ॥ ९१ द्वार : स्थंडिल अणावायमसंलोए परस्साणुवघायए। समे अज्झुसिरे यावि अचिरकालकयंमि य ॥७०९ ॥ विच्छिन्ने दूरमोगाढे नासन्ने बिलवज्जिए। तसपाणबीयरहिए उच्चाराईणि वोसिरे ॥७१० ॥ -गाथार्थस्थंडिल भूमि का स्वरूप-१. अनापात-असंलोक, २. दूसरे जीवों के लिये अनौपघातिक, ३. समतल, ४. अशुषिर, ५. अचिरकालकृत, ६. विस्तृत, ७. दूरावगाढ़, ८. अनासन्न, ९. बिल रहित एवं त्रस, प्राण व बीजरहित भूमि में स्थंडिल आदि परठे ।।७०९-७१० ।। -विवेचन___ (१) अनापात-असंलोक, (२) अनौपघातिक, (३) सम, (४) ठोस, (५) अचिरकालकृत, (६) विस्तीर्ण, (७) दूरावगाढ़, (८) अनासन्न, (९) बिल वर्जित, (१०) वस-जीव, बीज आदि रहित । ऐसे स्थंडिल में ही साधु को मलोत्सर्ग करना चाहिये। . १. अनापात-जहाँ स्वपक्ष और परपक्ष का आगमन नहीं होता, वह अनापात स्थंडिल भूमि है। असंलोक वृक्षादि से ढके हुए होने के कारण जहाँ किसी की दृष्टि न पड़ती हो, ऐसी भूमि असंलोक कहलाती है। नापात और असंलोक इन दोनों पदों से मिलकर चतुर्भगी बनती है२. अनापात असंलोक स्थंडिल = ' शुद्ध (भेद रहित) : २. अनापात संलोकवत् स्थंडिल = अशुद्ध (संलोक के भेद, प्रभेद तथा दोषों से युक्त) ३. आपातवत् असंलोक स्थंडिल = । अशुद्ध (आपात के भेद, प्रभेद तथा दोषों से युक्त) 3. आपातवत् संलोकवत् स्थंडिल = । अशुद्ध (आपात और संलोक के भेद, प्रभेद तथा दोषों से युक्त) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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