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________________ ३८२ प्रश्न-क्षयोपशम का अर्थ है उदयगत कर्मों को भोगकर क्षय करना और सत्तागत कर्म दलिकों का उपशम करना तथा उपशम का अर्थ भी प्रायः यही है तो फिर दोनों में अन्तर ही क्या है ? उत्तर—क्षयोपशम में सम्यक्त्वादि के घातक कर्मों का विपाकोदय नहीं होता किन्तु प्रदेशोदय अवश्य रहता है जबकि उपशम में दोनों ही नहीं रहते । प्रश्न- मिथ्यात्वादि के प्रदेशोदय की स्थिति में यहाँ सम्यक्त्व आदि कैसे सम्भव होंगे ? जैसे सास्वादन गुणस्थान में मिथ्यात्व आदि के उदय होने पर सम्यक्त्व नहीं होता । उत्तर - उदय दो प्रकार का है - रसोदय / विपाकोदय और प्रदेशोदय । इनमें रसोदय ही सम्यक्त्वादि गुणों का द्योतक है प्रदेशोदय नहीं । कारण प्रदेशोदय अत्यन्त मन्द होता है और मन्द उदय बाला कर्म अपने आवार्य गुण का घात नहीं कर सकता । जैसे मतिज्ञानावरणादि ध्रुवोदयी प्रकृतियों का सर्वदा विपाकानुभव होने पर भी वे अपने आवार्य गुणों ( मतिज्ञान आदि) का सम्पूर्ण रूपेण घात नहीं करते । कारण उनका विपाकोदय मन्द होता है । प्रदेशोदय तो विपाकोदय की अपेक्षा और अधिक मन्द होने से अपने आवार्य गुणों को सुतरां नष्ट नहीं कर सकता । अतः अनन्तानुबंधी आदि कषायों का उन गुणस्थानों में प्रदेशोदय होने पर भी वहाँ सम्यक्त्वादि गुणों का नाश नहीं होता । पूर्वोक्त उपशमना का क्रम पुरुषवेद में श्रेणी चढ़ने वालों की अपेक्षा से है । नपुंसक वेद में श्रेणी चढ़ने वाला जो आत्मा नपुंसक वेद के उदय में श्रेणी का प्रारम्भ करते हैं, वे आत्मा सर्वप्रथम अनन्तानुबन्धी कषाय एवं दर्शनत्रिक की, पश्चात् नपुंसकवेद और स्त्रीवेद की उपशमना (पूर्ववत्) करते हैं । स्त्रीवेद की उपशमना नपुंसक वेद के उदयकाल के उपान्त्य समय तक पूर्ण हो जाती है । अन्त समय में मात्र नपुंसक' वेद एक समय प्रमाण शेष रहता है। उसका क्षय होते ही आत्मा अवेदी बन जाता है । तत्पश्चात् पुरुषवेद आदि ७ प्रकृतियों की उपशमना एक ही साथ प्रारम्भ करता है । द्वार ९० स्त्रीवेद में श्रेणी चढ़ने वाला जो आत्मा स्त्रीवेद के उदय में श्रेणी चढ़ता है वह दर्शनत्रिक के उपशमन के पश्चात् सीधा ही नपुंसक वेद का उपशमन करता है, बाद में चरम समय प्रमाण उदय स्थिति को छोड़कर स्त्रीवेद के शेष दलिकों का उपशम व चरम समयगत दलिकों को भोगकर क्षय करता है । अन्त में अवेदी बनकर पुरुषवेद आदि सात प्रकृतियों की उपशमना एक ही साथ प्रारम्भ करता है 1 • किट्टीकृत संज्वलन लोभ के संख्याता खंडों का प्रतिसमय उपशम होता है । अन्तिम खंड शेष रहने पर उसके पुनः असंख्याता खंड होते हैं और उनमें से प्रतिसमय एक-एक खंड का उपशम होता है । किस प्रकृति का कौन से गुणस्थान में उपशम होता है ? · अनन्तानुबंधी ४ और दर्शनत्रिक = ७ प्रकृतियों का उपशम करने के पश्चात् अपूर्वकरण गुणस्थान में उपशमन करता Jain Education International I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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