SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४१ saan बृहद्गच्छीय देवसूरि अजितदेवसूरि आनन्दसूरि (पट्टधर) नेमीचन्द्रसूरि (पट्टधर) प्रद्योतनसूरि (पट्टधर) जिनचन्द्रसूरि (पट्टधर) आम्रदेवसूरि (शिष्य) श्री चन्द्रसूरि (शिष्य) हरिभद्रसूरि (पट्टधर) विजयसेनसूरि । नेमिचन्द्रसूरि (पट्टधर) (पट्टधर) यशोदेवसूरि (पट्टधर) गुणाकर पार्श्वदेव (शिष्य) (शिष्य) (देखें 'अनन्तनाथ चरित्र' प्रशस्ति) इस प्रशस्ति से स्पष्ट है कि ग्रन्थकार श्री आम्रदेवसूरि के शिष्य थे। पूर्वोक्त बिन्दुओं के अतिरिक्त विद्वान ग्रन्थकर्ता का जन्म कब और कहाँ हुआ था? दीक्षा कब और कहाँ ली थी? आपके माता-पिता कौन थे? आप किस जाति के थे? आपका विहार क्षेत्र कौन सा था? आपका शिष्य-परिवार कितना और कैसा था? ये प्रश्न आज तक अनुत्तरित हैं। इन प्रश्नों को समाहित करने वाला कोई भी संकेत कहीं नजर नहीं आता। यदि कोई इतिहासविज्ञ अपनी प्रतिभा का उपयोग इन तथ्यों को उजागर करने में करें तो इतिहास की बहुत बड़ी सेवा होगी। __ आपके द्वारा रचित वर्तमान में तीन ग्रन्थ समुपलब्ध हैं :-१. प्रवचनसारोद्धार, २. अणंतनाहचरियं तथा ३. जीवकुलक जो कि १७ गाथा प्रमाण प्राकृतपद्यमय हैं। जीवकुलक अत्यन्त लघुकृति होने से प्रस्तुत ग्रन्थ के २१४वें द्वार में ही ग्रन्थकार ने समाविष्ट कर दिया है। 'अणंतनाह चरियं' के अतिरिक्त एक अन्य चरित्र की भी आपने रचना की थी, ऐसा 'उपदेशमालावृत्ति' की प्रशस्ति (प्रशस्ति संग्रह पृ. २६) से ज्ञात होता है। पर वह आज तक अप्राप्य है। विषय-संग्रह की दृष्टि से अनूठा यह ग्रन्थ अध्येता को एक ही साथ अनेक विषयों का ज्ञान कराने में समर्थ है तथा प्रणेता के अगाध आगमिक ज्ञान का सबल साक्ष्य है। आगमों के तलस्पर्शी अध्ययन के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy