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मन की बात
उल्लेख कहीं भी नहीं हुआ है तथापि उनकी ही दूसरी कृति 'अणंतनाह चरियं' जो कि विक्रम संवत् १२१६ में रचित है, उनके सत्ता-काल का निर्णय करने में सबल साक्ष्य है। इसके अनुसार ग्रन्थकार का समय १२वी...१३वीं शताब्दी निश्चित होता है। यथा 'अणंतनाह चरियं'
'तो अम्मएवमुणिवइविणेयसिरि नेमिचंदसूरिहिं। अब्भुदयकररइयं चरियमिणमणंत जिणरन्नो ॥ ४७ ।। संसोहियं च ससमय-परसमयन्नूहिं विउसतिलएहिं । जसदेवसूरिमुणिवइ समंतभद्दाभिधाणेहिं ।। ४८ ।।
xxx रसचंदसूरसंखे वरिसे विक्कमनिवइवइक्कंते।
वइसाहसामबारसि, तिहिए वारंमि सोमस्स ।। ५० ॥ आचार्यदेव श्री आम्रदेवसूरि के शिष्य श्री नेमिचन्द्रसूरि के द्वारा अत्यन्त कल्याणकारी अनंतनाथ परमात्मा का चरित्र रचा गया। इस चरित्र का संशोधन स्व-परदर्शन के ज्ञाता विद्वज्जनों में तिलकतुल्य, समन्तभद्र उपनामवाले यशोदेवसूरि ने किया है।
वि.सं. १२१६ की वैशाखकृष्ण १२ सोमवार को प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना पूर्ण हुई। ग्रन्थकार की गुरु परंपरा
__ अपनी गुरु परंपरा का वर्णन ग्रन्थकार ने/स्वयं ने इस ग्रन्थ की तथा अनन्तनाथ चरित्र की प्रशस्ति में स्पष्ट रूप से किया है। यथा
धम्मधरुद्धरणमहावराहजिणचन्दसूरिसिस्साणं । सिरिअम्मएवसूरीण पायपंकयपराएहि ॥ १५९५ ॥ सिरिविजयसेणगणहर-कणि?-जसदेवसूरि-जिटेहिं । सिरिनेमिचंदसूरिहिं सविणयं सिस्सभणिएहिं ।। १५९६ ।।
xx x पवयणसारुद्धारो रइओ सपरावबोहकज्जमि। . जंकिंचि इह अजुत्तं बहुस्सुआ तं विसोहंतु ।। १५९८ ।।
॥ प्र. सा. प्रशस्ति ।। अनन्तनाथ चरित्र के अनुसार ग्रन्थकार की गुरु परंपरा इस प्रकार है
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