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द्वार ८६
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परीषह से पराजित हो जाता है। यह परीषह सभी परीषहों में अत्यन्त दुस्सह होने से सर्वप्रथम माना गया है।
२. पिपासा-क्षुधा-वेदना से पीड़ित मुनि उसे शान्त करने के लिये ऊँच-नीच कुलों में गौचरी के लिये भ्रमण करते हैं। इस परिश्रम के कारण प्यास लगने की अधिक सम्भावना रहती है अत: क्षुधा परीषह के बाद दूसरा स्थान 'पिपासा' को दिया गया। जल पीने की इच्छा 'पिपासा' है। प्यास व्यक्ति को अत्यन्त व्याकुल बना देती है। ऐसी स्थिति में भी शीतल जल की इच्छा न रखते हुए शान्त भाव से प्यास को सहन करना पिपासा परीषह है। यदि कल्प्य जल मिलता हो तो प्राणिमात्र के प्रति दयालु मुनि के द्वारा उसे ग्रहण कर अपनी पिपासा शान्त कर शरीर की रक्षा अवश्य करनी चाहिये।
३. शीत-भ्रमणशील मुनि को सर्दी व गर्मी दोनों सहन करनी पड़ती है अत: तीसरा व चतुर्थ स्थान शीत-उष्ण परीषह को दिया गया। गत्यर्थक ‘श्यैङ्' धातु से 'क्त' प्रत्यय व संप्रसारण आदि होकर 'शीत' शब्द बनता है। कड़ाके की सर्दी पड़ने पर भी वस्त्ररहित या जीर्णवस्त्र वाला मुनि अकल्पनीय वस्त्र ग्रहण करने की चाह नहीं करे प्रत्युत शान्तभाव से सर्दी सहन करे। आगमोक्त विधि से यदि एषणीय वस्त्र मिल जाये तो अवश्य ग्रहण करे किन्तु शीत से पीड़ित बनकर अग्नि आदि का आरम्भ न करावे, न अन्य द्वारा प्रज्वलित आग का सेवन करे । इस प्रकार मुनि शीत परीषह का विजेता बनता
४. उष्ण-ऋतुजन्य ताप व उससे तप्त शिला... आँगन ... मार्ग आदि मुनि के लिये परीषहरूप है। गर्मी से पीड़ित होने पर भी जलावगाहन, स्नान, पंखे की हवा आदि की लेशमात्र भी इच्छा न करे । न धूप से बचने के लिये छाते आदि का उपयोग करे। इस प्रकार मुनि उष्ण परीषह को शान्तिपूर्वक सहन करे।
५. दंश जो काटते हैं जैसे; डांस, मच्छर, मांकण आदि ‘दंश' कहलाते हैं। वे परीषहरूप है। डांस, मच्छर आदि के काटे जाने पर भी मुनि स्थान छोड़ने की इच्छा न करे । मच्छर आदि को भगाने के लिये धूआँ आदि का प्रयोग भी न करे, न ही पंखा चलाकर उन्हें भगाने का प्रयास करे। इस प्रकार दंशपरीषह पर मुनि विजय प्राप्त करता है।
६. अचेल—जिनकल्पियों के लिये निर्वस्त्र रहना अचेल परीषह है किन्तु स्थविरकल्पी मुनियों के लिए अल्पमूल्य वाले अथवा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र धारण करना अचेल परीषह है। जिस प्रकार दुराचारी व्यक्ति 'अशील' कहलाता है, वैसे अल्पमूल्य वाले व जीर्ण-शीर्ण वस्त्र वाले मुनि वस्त्र सहित होने पर भी 'अचेलक' कहलाते हैं। मुनि अल्पमूल्य वाले, फटे-पुराने, मैले-कुचेले वस्त्र धारण करे, परन्तु मन में कभी ऐसा विचार नहीं करे कि मेरे पास पूर्वगृहीत अच्छे वस्त्र नहीं हैं। ऐसा कोई दाता नहीं मिल रहा है। अच्छा होता पहले ही वस्त्र ग्रहण कर लेता, आदि । उत्तम वस्त्र मिलने की सम्भावना से आनन्दित भी न बने।
७. अरति-संयम में स्थिरता रति है उससे विपरीत स्थिति ‘अरति' है। अरति परीषह रूप है।
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