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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३५५ प्रयोजन (v) कृत्ति प्रयोजन - किसी के पाँव के नख आदि में चोट लग गई हो तो चलने में सुविधा रहे इसलिये अंगुलि आदि में पहना जाता है अथवा नखरदनिका (नाखून काटने का उपकरण विशेष) रखने के लिये उपयोगी होती है। - मोटा-चमड़ा। - रास्ते में दावानल से बचने के लिये मोटा चमड़ा रखना आवश्यक है, ताकि आग में से निकलना हो तो चमड़ा ओढ़कर निकला जा सकता है तथा अत्यधिक सचित्त पृथ्वीकाय वाले स्थान पर जीवों की रक्षा के लिये बिछाया जा सकता है। कदाचित् उपधि चोरों ने लूट ली हो तो प्रावरण के अभाव में चर्म ओढ़ा भी जा सकता है ॥ ६७६ ॥ ८४ द्वार: दूष्य-पंचक अप्पडिलेहियदूसे तूली उवहाणगं च नायव्वं । गंडुवहाणाऽऽलिंगिणि मसूरए चेव पोत्तमए ॥६७७ ॥ पल्हवि कोयवि पावार नवयए तह य दाढिगाली य। दुप्पडिलेहियदूसे एयं बीयं भवे पणगं ॥६७८ ॥ पल्हवि हत्थुत्थरणं कोयवओ रूयपूरिओ पडओ। दढगाली धोयपोत्ती सेस पसिद्धा भवे भेया ॥६७९ ॥ खरडो तह वोरुट्ठी सलोमपडओ तहा हवइ जीणं। सदसं वत्थं पल्हविपमुहाणमिमे उ पज्जाया ॥६८० ॥ -गाथार्थदूष्यपंचक—जिसका पडिलेहण नहीं हो सकता वह अप्रत्युपेक्षित वस्त्र है। उसके पाँच भेद हैं-१. तूली, २. उपधानक, ३. गंडोपधानिका, ४. आलिंगिनी तथा ५. मसूरक। जिसकी पडिलेहण अच्छी तरह से नहीं हो सकती वह दुष्प्रत्युपेक्षित वस्त्र है। जैसे १. पल्हवी, २. कोयविक, ३. प्रावारक, ४. नवतक तथा ५. दृढ़गालि ॥६७७-६७८॥ हाथी की पीठ पर डाला जाने वाला वस्त्र (झूल) पल्हवी है। रूई से भरी हुई रजाई आदि कोयविक है। धोया हुआ रेशेदार वस्त्र दृढ़गाली है। शेष दोनों वस्त्र प्रसिद्ध हैं। खरड़ वोरुट्ठी, सलोमपद, जीन एवं दशीवाला वस्त्र-ये क्रमश: पल्हवी आदि के पर्याय हैं ।।६७९-६८० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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