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द्वार ८३
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सय
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८३ द्वार:
चर्म-पंचक
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(i) तलिग
अय एल गावि महिसी मिगाणमजिणं च पंचमं होइ। तलिगा खल्लग वद्धे कोसग कित्ती य बीयं तु ॥६७६ ॥
-गाथार्थ८३ : चर्म पंचक-१. बकरा, २. भेड़ ३. गाय, ४. भैंस तथा ५. हिरन का चर्म अथवा दूसरी तरह से भी चर्म पंचक है। यथा १. उपानह २. चर्म के पादरक्षक, ३. चर्म निर्मित डोरी, ४. चर्म की थैली एवं ५. कृति ॥६७६ ।।
-विवेचन चर्म = चमड़ा, पाँच प्रकार का है। (i) बकरी का चर्म (ii) भेड़ का चर्म (iii) गाय का चर्म . (iv) भैंस का चर्म (v) हरिण का चर्म अथवा दूसरी तरह से चर्म के पाँच
भेद हैं- एक तलिये वाले जूते यदि न मिले तो दो, तीन व चार तलिये
वाले भी ग्रहण किये जा सकते हैं। प्रयोजन
- किसी सार्थ के साथ रात्रि को विहार करना पड़े तो कंटकादि से पाँव की सुरक्षा के लिये तथा कोई मुनि अति सुकुमाल हो, नंगे पैर चलने में असमर्थ हो तो जूतों का उपयोग किया जा सकता है। कारणवश उन्मार्ग में जाना पड़े और वहाँ हिंसक पशुओं के भय से शीघ्रगमन करना पड़े तो काँटे इत्यादि से पाँव की रक्षा
के लिये जूते पहनना आवश्यक है। (ii) खल्लक
- विशेष प्रकार के जूते । (पूरे पाँव को ढकने वाले) प्रयोजन
- जिसके पाँव सर्दी के कारण अधिक फट जाते हों, जिससे चलने
में अत्यन्त कठिनाई होती हो अथवा सुकोमल होने से बिवाइयाँ फटने के कारण जो नंगे पैर नहीं चल सकते हों तो 'खल्लक'
का उपयोग किया जा सकता है। (iii) वर्धा
- सीने का उपकरण विशेष। वधा = वाघर. चमडे की डोरी प्रयोजन
- फटे हुए उपानह आदि को सीने में उपयोगी। (iv) कोशक
-- चर्ममय उपकरण (छोटा थैला)।
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