________________
प्रवचन-सारोद्धार
३५३
लक्षण
शुभ
अशुभ
पर्व
फल
पर्व
फल
अत्यन्त रोग आरोग्य असम्पति
१. ऊपर..ऊपर प्रवर्धमान टेढ़ा-मेढ़ा, कीड़ा लगा | पर्व वाली। हुआ । रेखा-युक्त, पोला, २. एक ही वर्ण के पर्व जला हुआ। स्थान पर वाली।
ही सूखा हुआ। तथा |३. निबिड़ (छिद्ररहित) विविध वर्ण वाला दंड
पर्व वाली। अशुभ है। ४. स्निग्ध कोमल और
गोलाकार।
प्रशंसा कलह लाभ मरण कलहनिवारण
यश
सर्वसंपति
८२ द्वारः |
तृण-पंचक
तणपणगं पुण भणियं जिणेहिं जियरागदोसमोहेहिं । साली वीहिय कोद्दव रालय रन्ने तणाईं च ॥६७५ ॥
-गाथार्थ८२ : तृण पंचक-राग, द्वेष और मोह विजेता तीर्थंकरों ने पाँच प्रकार के तृण बताये हैं। १. शाली-घास, २. व्रीहि-घास, ३. कोद्रव का घास, ४. कंगु का घास तथा ५. श्यामाक का घास ॥६७५॥
-विवेचन तृण = पलाल, घास (i) शालिक
कमलशालि आदि चावलों का भूसा या घास ।
व्रीहि आदि धान्य का भूसा या घास। (iii) कोद्रव
कोद्रव का भूसा या घास। रालक
कंगु धान्य विशेष का भूसा या घास। अरण्यतृण
श्यामाक आदि धान्यों का भूसा या घास ॥ ६७५ ॥
व्रीहिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org