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द्वार ८१
है। यष्टि पर्दा बाँधने में उपयोगी है। वियष्टि चोर आदि से रक्षा करने के लिये उपाश्रय के द्वार को बजाने के लिये आवश्यक है। शीतोष्ण काल में गौचरी आदि के लिये बाहर जाते समय दंड तथा वर्षाकाल में विदंड ले जाया जाता है, कारण विदंड छोटा होने से अप्काय जीवों की विराधना से बचने के लिये उसे कल्प के भीतर डाला जा सकता है ।।६७०-६७३ ॥
जिस दंड में पर्व विषम संख्या में हों, उत्तरोत्तर प्रवर्धमान परिमाण वाले हो, सभी पर्व एक रंग के हो, जो दंड भीतर से ठोस हो, वह शुभ होता है। शेष दंड अशुभ है। दश पर्ववाला दंड भी शुभ माना जाता है ।।६७४ ।।
-विवेचन १. यष्टि
--- साढ़े तीन हाथ लम्बी देह-प्रमाण होती है। प्रयोजन
- गौचरी करते समय गृहस्थ न देखे इसलिये यवनिका बाँधने में
उपयोगी। २. वियष्टि
- यष्टि से चार अंगुल न्यून प्रमाण वाली। प्रयोजन
- उपाश्रय के दरवाजे को बन्द करके अटकाने में उपयोगी। चोर
आदि के भय के समय दरवाजा बजाकर उन्हें भगाने में उपयोगी।
३.दण्ड
प्रयोजन
४. विदण्ड्
प्रयोजन
--- कंधे से लेकर नीचे तक लम्बा। - शीतोष्ण काल में गौचरी जाते समय द्विपद, चतुष्पद अथवा शिकारी पशुओं का निवारण करने के लिये, जंगल में व्याघ्र-चोरादि के उपद्रव के समय सुरक्षा के लिये, तथा वृद्ध व्यक्ति को चलते.
समय सहारा लेने के लिए आवश्यक है। - ऊँचाई में कक्षा प्रमाण। - वर्षा काल में गौचरी जाते समय उपयोगी। छोटा होने से वर्षा ।
के समय कामली के भीतर रखा जा सकता है जिससे अप्काय
की विराधना न हो। - शरीर से चार अंगुल अधिक प्रमाणवाली अर्थात् तीन हाथ सोलह
अंगुल प्रमाणवाली। - विहार करते समय नदी, द्रह में उतरना पड़े तो इसके द्वारा पानी
मापा जाता है ।। ६६९-६७३ ।।
५. नालिका
प्रयोजन
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