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________________ प्रवचन - सारोद्धार ३. मुष्टिका पुस्तक — चार अंगुल लम्बी व गोलाकार पुस्तक मुष्टिका पुस्तक है अथवा चार अंगुल लम्बी व चार अंगुल मोटी चौकोर पुस्तक मुष्टिका है। जैसे गुटकाकार पुस्तक । ४. संपुटफलक—–व्यापारियों की हिसाब की बही के समान जिस पुस्तक के दोनों ओर जिल्द बँधी हुई हो वह संपुटफलक पुस्तक है । ५. छेदपाटी पुस्तक —– जो पुस्तक लम्बाई में अधिक या न्यून हो, चौड़ाई में ठीक-ठीक हो तथा मोटाई में अल्प हो वह छेटपाटी पुस्तक है । (ताड पत्र के ग्रन्थ) पुस्तकों के इन भेदों का वर्णन बुद्धिकल्पित नहीं है वरन् निशीथचूर्णि के अनुसार यहाँ बताया गया है । ६६४-६६८ ॥ ८१ द्वार : दंड-पंचक ३५१ लट्ठी तहा विलट्ठी दंडो य विदंडओ य नाली अ । भणियं दंडयपणगं वक्खाणमिणं भवे तस्स ॥६६९ ॥ लट्ठी आयपमाणा विलट्ठी चउरंगुलेण परिहीणा । दंडो बाहुपमाणो विदंडओ कक्खमित्तो उ ॥ ६७० ।। लट्ठीए चउरंगुल समूसिया दंडपंचगे नाली । नइपमुहजलुत्तारे तीए थग्घिज्जए सलिलं ॥६७१ ॥ बज्झइ लट्ठीए जवणिया विलट्ठीए कत्थइ दुवारं । घट्टिज्जई ओवस्सयतणयं तेणाइरक्खट्ठा ॥६७२ ॥ उउबद्धम्मि उ दंडो विदंडओ घिप्पर वरिसयाले । जं सो लहुओ निज्जइ कप्पंतरिओ जलभरणं ॥ ६७३ ॥ विसमाइ वद्धमाणाइं दस य पव्वाइं एगवन्नाई । दंडेसु अपोल्लाई सुहाई सेसाई असुहाई ॥६७४ ॥ -गाथार्थदंडपंचक - १. यष्टि, २. वियष्टि, ३. दंड, ४. विदंड और ५. नाली - ये दंड के पाँच प्रकार हैं । इनका स्वरूप आगे बताया जायेगा || ६६९ ॥ १. आत्मप्रमाण दंड यष्टि कहलाता है । २. यष्टि से चार अंगुल न्यून दंड वियष्टि कहलाता है । ३. स्कंध प्रमाण दंड कहलाता है । ४. कक्षा पर्यंत लम्बा विदंड कहलाता है तथा ५ यष्टि से चार अंगुल ऊँचा नालिका है। यह नदी आदि उतरते समय जल का माप करने में उपयोगी होता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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