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________________ ३५० द्वार ८० ८० द्वार: पुस्तक-पंचक गंडी कच्छवि मुट्ठी संपुडफलए तहा छिवाडी य। एवं पोत्थयपणगं वक्खाणमिणं भवे तस्स ॥६६४ ॥ बाहल्लपुहुत्तेहिं गंडीपोत्यो उ तुल्लगो दीहो। कच्छवि अंते तणुओ मझे पिहलो मुणेयव्वो ॥६६५ ॥ चउरंगुलदीहो वा वट्टागिइ मुट्ठिपुत्थगो अहवा। चउरंगुलदीहो च्चिय चउरंसो होई विन्नेओ ॥६६६ ॥ संपुडगो दुगमाई फलया वोच्छं छिवाडिमित्ताहे । तणुपत्तूसियरूवो होइ छिवाडी बुहा बेंति ॥६६७ ॥ दीहो वा हस्सो वा जो पिहलो होई अप्पबाहल्लो। तं मुणियसमयसारा छिवाडिपोत्यं भयंतीह ॥६६८ ॥ -गाथार्थ- . पुस्तक पंचक-१. गंडी, २. कच्छपी, ३. मुष्टी, ४. संपुटफलक तथा ५. छेदपाटी-इस प्रकार , पुस्तक के पाँच भेद हैं। जिनकी व्याख्या निम्न है ॥६६४ ॥ जिसकी मोटाई-चौड़ाई तुल्य और लम्बाई अधिक है वह गंडी पुस्तक है। जिसके दोनों छोर पतले और मध्य भाग विस्तृत हो वह कच्छपी पुस्तक है। जो चार अंगुल परिमाण लंब गोल है अथवा जो चार अंगुल लंबी और मोटी है वह मुष्टी पुस्तक है। जिसके दोनों ओर काष्ठ की पाटी या पुढे लगे हों वह संपुटफलक पुस्तक है। अल्पपृष्ठ युक्त और ऊँचाईवाली पुस्तक छेदपाटी पुस्तक है। छेदपाटी पुस्तक का अन्य लक्षण भी है जिस पुस्तक का विस्तार दीर्घ अथवा ह्रस्व हो पर मोटाई अल्प हो वह छेदपाटी पुस्तक है ॥६६५-६६८।। ___-विवेचनआकार-प्रकार एवं उपयोग के भेद से पुस्तक के पाँच प्रकार हैं। १. गंडिका पुस्तक—जिस पुस्तक की चौड़ाई व मोटाई समान हो पर लम्बाई अधिक हो अर्थात् जो पुस्तक समचतुरस्र लम्बी हो वह गंडिका पुस्तक है। जैसे ताड़पत्रीय प्रतियां ।। २. कच्छपी पुस्तक—जिस पुस्तक के दोनों किनारे पतले हों पर मध्य भाग मोटा हो वह कच्छपी पुस्तक है । अर्थात् जिस पुस्तक के दोनों छोर लंबे, गोल व तीखे हों। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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