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-विवेचन
दूष्य = वस्त्र | यह दो प्रकार का है - (१) अप्रत्युपेक्ष और (२) दुष्प्रत्युपेक्ष । (१) अप्रत्युपेक्ष- जिसकी प्रतिलेखना न की जा सके। इसके पाँच भेद हैंसूती या रेशमी रूई से भरा हुआ बिस्तर या गादी । = हंस के रोम या तूल आदि से भरा हुआ तकिया ।
= तकिये के ऊपर गाल के नीचे रखने का छोटा तकिया । घुटने या कोहनी के नीचे रखने का छोटा तकिया । से भरा हुआ कपड़े या चर्म का आसन ।
न की जा सके। इसके पाँच भेद हैंपल्हवी = हाथी, ऊँट आदि पर डालने योग्य अल्प या अधिक रोएं वाला वस्त्र जिसे देश्यभाषा में 'खरड़' कहते हैं ।
(i) तूली
(ii) उपधानक
(iii)
(iv) आलिंगिणी
(v) मसूरक = बूर (२) दुष्प्रत्युपेक्ष — जिसकी प्रतिलेखना अच्छी तरह
(i)
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
गण्डोपधानिका
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नवतक
८५ द्वार :
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कोयविक = रूई से भरी हुई रजाई आदि नेपाल के कम्बल आदि का भी इसी में अन्तर्भाव होता है । इसे 'वोरुट्ठी' कहते हैं ।
द्वार ८४-८५
प्रावारक = रोएं वाला वस्त्र तथा मोटा वस्त्र, किसी के अनुसार प्रावारक का अर्थ मोटा कंबल है । यह सलोम पट भी कहलाता है ।
= बिछाने का ऊनी वस्त्र जिसे भाषा में जीण कहते हैं। (जीण घोड़े पर डाली जाती है) ।
दृढ़गाली = ब्राह्मणों के पहनने योग्य रेशे वाला वस्त्र जिसे उत्तरासन, दुपट्टा या खेस कहते हैं ।। ६७७-६८० ।।
अवग्रह-पंचक
देविंद राय गिवइ सागरि साहम्मि उग्गहे पंच । अणुजाणाविय साहूण कप्पए सव्वया वसिउं ॥ ६८१ ॥ अणुजाणावेयव्वो जईहिं दाहिणदिसाहिवो इंदो । भरहंमि भरहराया जं सो छक्खंडमहिनाहो ॥६८२ ॥ तह गिवईवि देसस्स नायगो सागरित्ति सेज्जवई । साहम्मिओ य सूरी जंमि पुरे विहियवरिसालो ॥६८३ ॥ तप्पडिबद्धं तं जाव दोणि भासे अओ जईण सया ।
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