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________________ ३५६ -विवेचन दूष्य = वस्त्र | यह दो प्रकार का है - (१) अप्रत्युपेक्ष और (२) दुष्प्रत्युपेक्ष । (१) अप्रत्युपेक्ष- जिसकी प्रतिलेखना न की जा सके। इसके पाँच भेद हैंसूती या रेशमी रूई से भरा हुआ बिस्तर या गादी । = हंस के रोम या तूल आदि से भरा हुआ तकिया । = तकिये के ऊपर गाल के नीचे रखने का छोटा तकिया । घुटने या कोहनी के नीचे रखने का छोटा तकिया । से भरा हुआ कपड़े या चर्म का आसन । न की जा सके। इसके पाँच भेद हैंपल्हवी = हाथी, ऊँट आदि पर डालने योग्य अल्प या अधिक रोएं वाला वस्त्र जिसे देश्यभाषा में 'खरड़' कहते हैं । (i) तूली (ii) उपधानक (iii) (iv) आलिंगिणी (v) मसूरक = बूर (२) दुष्प्रत्युपेक्ष — जिसकी प्रतिलेखना अच्छी तरह (i) (ii) (iii) (iv) (v) गण्डोपधानिका Jain Education International = नवतक ८५ द्वार : = कोयविक = रूई से भरी हुई रजाई आदि नेपाल के कम्बल आदि का भी इसी में अन्तर्भाव होता है । इसे 'वोरुट्ठी' कहते हैं । द्वार ८४-८५ प्रावारक = रोएं वाला वस्त्र तथा मोटा वस्त्र, किसी के अनुसार प्रावारक का अर्थ मोटा कंबल है । यह सलोम पट भी कहलाता है । = बिछाने का ऊनी वस्त्र जिसे भाषा में जीण कहते हैं। (जीण घोड़े पर डाली जाती है) । दृढ़गाली = ब्राह्मणों के पहनने योग्य रेशे वाला वस्त्र जिसे उत्तरासन, दुपट्टा या खेस कहते हैं ।। ६७७-६८० ।। अवग्रह-पंचक देविंद राय गिवइ सागरि साहम्मि उग्गहे पंच । अणुजाणाविय साहूण कप्पए सव्वया वसिउं ॥ ६८१ ॥ अणुजाणावेयव्वो जईहिं दाहिणदिसाहिवो इंदो । भरहंमि भरहराया जं सो छक्खंडमहिनाहो ॥६८२ ॥ तह गिवईवि देसस्स नायगो सागरित्ति सेज्जवई । साहम्मिओ य सूरी जंमि पुरे विहियवरिसालो ॥६८३ ॥ तप्पडिबद्धं तं जाव दोणि भासे अओ जईण सया । For Private & Personal Use Only = www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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