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________________ मन की बात ३८ को माना है तो किसी ने उसके स्थान पर वीरस्तव का उल्लेख किया है। वर्तमान में आगमप्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजय जी म. ने 'पइण्णय सुत्ताई' ग्रन्थ के प्रथम भाग की भूमिका में प्रकीर्णक के नाम से अभिहित लगभग २२ ग्रन्थों का उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त एक ही नाम के अनेक प्रकीर्णक उपलब्ध होते हैं। जैसे 'आउरपच्चक्खाण' के नाम से ३ ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। उनमें से एक ग्रन्थ १०वीं शती के आचार्य ‘वीरभद्र' की कृति है। चूलिकासूत्र - नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार ये दो चूलिकासूत्र हैं। स्थानकवासी परंपरा इन्हें मूलसूत्र के रूप में मानती है। फिर भी इतना निश्चित है कि ये दोनों ग्रन्थ श्वेतांबर परंपरा के सभी संप्रदायों को मान्य इस प्रकार वर्तमानकालीन आगम साहित्य अंग, उपांग, प्रकीर्णक, छेद, मूल एवं चूलिकासूत्र के रूप में वर्गीकृत मिलता है। प्रवचनसारोद्धार का स्थान अंग और अंगबाह्य शास्त्रों की परिभाषा देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ की परिगणना अंगबाह्य शास्त्र में की जाती है क्योंकि यह अंग साहित्य पर आधारित है तथा गीतार्थ महापुरुष द्वारा रचित एवं संकलित है। यह आगम साहित्य के प्रकरण विभाग के अन्तर्गत आता है। एक या अनेक विषयों से संबंधित सामग्री का संकलन 'प्रकरण' है। आगम के गूढ़ विषयों का सरलीकरण एवं विस्तृत विवेचनाओं का संक्षिप्तीकरण प्रकरणों की उद्भावना का मूल है। प्रकीर्णक एवं प्रकरण प्रकीर्णक एवं प्रकरण दोनों परस्पर भिन्न विधायें हैं। प्रकीर्णक तीर्थकर परमात्मा के स्वहस्त दीक्षित शिष्यों की रचनायें हैं। प्राकृत में इन्हें ‘पयन्ना' कहा जाता है। भगवान महावीर के १४००० शिष्य थे। उनके द्वारा रचित प्रकीर्णक भी १४००० थे, पर काल के प्रभाव से आज मात्र १९ पयन्ना प्राप्त होते हैं, उनमें से प्रसिद्ध तो १० ही हैं। ‘प्रकरण' ग्रन्थों के निर्माता या संकलनकर्ता गीतार्थ महापुरुष होते हैं। वे आगमसंबद्ध एक या अनेक विषयों के निरूपक हैं। यद्यपि 'प्रकरणग्रन्थ' आगमसंबद्ध विषय का ही निरूपण करते हैं तथापि दोनों की निरूपण-शैली में पर्याप्त अन्तर है। आगम की अपेक्षा प्रकरण का विषयनिरूपण संक्षिप्त, सरल व सुबोध होता है । मन्दबुद्धि आत्मा भी प्रकरणों के माध्यम से तत्त्व का अवबोध सुगमता से कर सकते हैं। इसीलिये प्रकरण आगमों के प्रवेश द्वार 'Get way of Agamas.' कहलाते हैं। प्रकरण प्राय: पद्यमय होते हैं। आगमिक अध्ययन के अनधिकारी आत्मा भी प्रकरणों के माध्यम से गूढ, गंभीर आगमिक विषय में अवगाहन करने का सौभाग्य उपलब्ध कर सकते हैं। भाषा की दृष्टि से प्रकरण प्राकृत व संस्कृत दोनों में निबद्ध मिलते हैं। 'प्रवचनसारोद्धार' प्रकरण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का नाम प्रवचन + सार + उद्धार तीन शब्दों का समन्वित रूप है। प्रवचन शब्द के कई अर्थ हैं। प्रवचन अर्थात् जिनशासन, जिनवाणी, जिनागम आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001716
Book TitlePravachana Saroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1999
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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